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________________ (७४) चरकसंहिता-भा०टी०॥ इनका सेवन करे । तथा जव,गेंहू, शावर, शशा, हिरन, लवा,सफेद तीतर, इनका भोजन करे और आसव, सीधु, अथवा मावकि इनको पीवे । और वसन्तऋतुम. वर्गीचों तथा स्त्रीकी जवानीका आनन्द लेवे ॥ २२ ॥ २३ ॥ २४ ॥ २५ ॥ ग्रीष्मके गुण तथा उसमें सेवनीय पदार्थ । मयखेर्जगतःसारंग्रीमेपेपीयतेरविः स्वादुशीतंद्रवंस्निग्धमन्नपानंतदाहितम्॥२६॥शीतंसशर्करमन्थंजाङ्गलान्मृगपक्षिणः। घृतंपयःसशाल्यन्नंभजनग्रीष्मेनसीदति ॥ २७॥मद्यमल्पंनवा पेयमथवासुवहूदकम् । लवणाम्लकटूष्णानिव्यायामश्चात्रवजयत्॥२८॥दिवाशीतगृहेनिद्रानिशिचन्द्रांशुशीतले । भजेच्चन्दनदिग्धाङ्ग:प्रवातहर्म्यमस्तके ॥२९॥ व्यजनैःपाणिसंस्पर्शीश्चन्दनोदकशीतलैः।सेव्यमानोभजेदास्यांमुक्तामणिविभूषितः ॥ ३० ॥ काननानिचशीतानिजलानिकुसुमानिच । ग्रीप्मकालेनिषेवेतमैथनाद्विरतोनरः ॥ ३१ ॥ ग्रीष्मऋतुम सूर्यभगवान् अपनी किरणोंसें जंगत्के सारको पीजाते हैं इसलिये ग्रीष्मऋतुम-पतले, शीतल और चिकने आहारका सेवन करना चाहिये ऐसे ही शीतल,सुगंधित, मीठे जल पीने उचित हैं।और ठंढे मिसरी मिले मंथ,जंगली जीवों का मांस.वृत.दूध,शालीचावल, इनका भोजन करनेसे मनुष्य गर्मीसे दुःखित नहीं होतााग्रीष्मऋतुम मद्य पीना उचित नहीं यदि पीनेकी आवश्यकता भी हो तो थोडा मद्य अधिक जल मिलाकर पीवे । गर्मों में नमकीन, खट्टे, चरपरे,और उष्ण पदार्थ संवन नहीं करना चाहिये । दिनमें शीतल स्थानमें रात्रीको जहाँ चन्द्रमाकी किरण पडतीहा और हवा आती हो ऐसे स्थानमं मकानके शिखर पर शीतल चन्दनादि लगाकर शयन करे और शतिल चन्दनादिसे सुगंधित जलसे भीगे पझेकी पवनका सेवन करे । तथा मणि मुक्ता आदि आभूषणोंको पहने । और घने वृक्षाके जंगल शीतल जल.सुगंधित फूल इनको सेवे।परन्तु गर्मीमें स्त्रीका सेवन न करे।।२६-३१॥ वर्षाम जठराग्निका दुर्वल होना । आदानदुर्वलेदेहेपक्ताभवातदुर्वलः । स वर्षास्वनिलादीनांदृपणैर्वाध्यतंपुनः ॥ ३२ ॥ .
SR No.009547
Book TitleCharaka Samhita
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamprasad Vaidya
PublisherKhemraj Shrikrushnadas Shreshthi Mumbai
Publication Year1923
Total Pages939
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Medicine
File Size48 MB
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