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________________ विशेषतासे निर्वातल्या शिशिर ऋतुम सबसे शीत बाधिक हो। सूत्रस्थान-अ० ६... (७३) शिशिर ऋतुमें भी हेमन्तके समान क्रिया करे।और,हलके,रूक्ष,वातल, अन्नपान, आयुका वेग, अल्पाहार, जलमें घुले सत्तू शर्वत आदि सेवन न करे ॥ १७ ॥ हेमन्त और शिशिरके कार्य । हेमन्तशिशिरेतुल्येशिशिरेऽल्पविशेषणम् ।रोक्ष्यमादानजंशीतमेघमारुतवर्षजम्॥ १८ ॥ तस्मा?मन्तिकःसर्वःशिशिरेविधिरिष्यते॥निवातमुष्णमधिकं शिशिरेगृहमाश्रयेत् ॥ १९ ॥ कटुतिक्तकषायाणिवातलानिलघानचा वर्जयेदन्नपानानिशिशिरेशीतलानिच ॥ २०॥ हेमन्तेनिचितःश्लेष्मादिनकृद्भाभिगीरतः। कायाग्निबाधतेरोगांस्ततःप्रकुरुतेबहून् ॥ २१ ॥ हेमन्त और शिशिर यह दोनों ऋतु वराबर ही हैं किन्तु शिशिरमें आदानजन्य रूक्ष शीत होताहै और वृष्टि, वायु आदिसे शीत अधिक होताहै इतनी विशषता है॥ १८॥ इसीलिये शिशिर ऋतुमें सब क्रिया हेमंतके समान ही करनी चाहिये । विशेषतासे निर्वात और गर्म स्थानमें रहना चाहिये । तथा कडुए, कषैले, तीते, वायुके करनेवाले हलके, शीतल पदार्थों को त्यागदेना चाहिये ॥ १९ ॥ २० ॥ हेमतम शीतसे संचित हुआ कफ वसन्तऋतुमें सूर्यकी किरणोंसे पिघलकर शरीरमें सञ्चालित हुआ शरीरकी अग्निको विगाडकर अनेक रोगोंको उत्पन्न करताहै २१॥ वसन्तमें वमनादि कर्म धरणीय द्रव्य तथा भोज्य पदार्थ । तस्माद्वसन्तेकर्माणिवमनादीनिकारयेत् । गुर्वम्लस्निग्धमधुरं दिवास्वप्नश्चवर्जयेत्॥ २२ ॥ व्यायामोद्वर्तनधमकवलग्रहमञ्जनम् । मुखाम्बुनाशौचविधिशीलयेत्कुसुमागमे ॥ २३ ॥ चन्दनागुरुदिग्धाङ्गोयवगोधूमभोजनः। शारंभशाशमैणेयंमागंलावकंपिञ्जलम् ॥ २४ ॥ भक्षयेन्निगदसीधुपिवेन्माध्वीकमेववा । वसन्तेनुपिबेस्त्रीणांकामिनीनांश्चयौवनम्॥ २५ ॥ इसालये वसन्तमें वमन विरेचनादिसे वढेहुए दोषको निकाल देना चाहिये।भारी, खट्टे,चिकने,और मीठे पदार्थ तथा दिनमें सोना इनको त्याग, देवोव्यायाम,मालिस, धूमपान, कवलग्रहण, अंजन, सुखोष्ण जलसे स्नान शौचादि अगुरु चंदनका लेपन
SR No.009547
Book TitleCharaka Samhita
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamprasad Vaidya
PublisherKhemraj Shrikrushnadas Shreshthi Mumbai
Publication Year1923
Total Pages939
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Medicine
File Size48 MB
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