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________________ प्रयोग करें 0 आओ जीना सीनवे.... बोलना मनुष्य ही एक ऐसा प्राणी है जो भाषा का उपयोग करता है। मनुष्य में ही बोलने की क्षमता है। बोलने से अपनी भावना वह व्यक्त करता है। मधुर और मृदु बोलने से वह सबका प्रिय बनता है। मधुर वाणी सबको अच्छी लगती है। कटु और कठोर बोलने से वैरभाव बढ़ता है, झगड़े होते हैं। इसलिए वाणी का विवेक आवश्यक है। बोलना तो सभी जानते हैं। सुखमय और आनंदमय जीना सीखना है तो कैसे बोलना? कब बोलना? यह भी सीखना पड़ेगा। मौन सबसे अच्छा है, परंतु मौन रखना आसान नहीं है। इसलिए कम बोलना और सच बोलना सीखना चाहिए। - आवश्यक हो तो ही बोलना, मधुर और मृदु बोलना - सत्य और प्रिय लगे ऐसा बोलना - दिन में एक-दो घंटे मौन करने का अभ्यास करना - गुस्से में हों तो नहीं बोलना - विवेकपूर्ण और विचारपूर्वक बोलना चाहिए - ऊँची आवाज के बदले धीमे बोलना अच्छा होता है बोलने से अनेक समस्याएँ पैदा होती है। वाणी समस्या भी है और समाधान भी है। जिन्हें बोलना आता है पत्थर दिल को भी पिघला सकते हैं और सही बोलना नहीं जानते वह एक शब्द से महाभारत भी निर्माण कर सकते है। इसलिए - सोच कर बोलो निरंतर मधुर वाणी। आओ जीना सीन... प्रयोग करें गुस्सा आज की सबसे अहम् समस्या है क्रोध। किसी के भी घर जाओ, यह समस्या है ही। यह जटिल संवेग है। छोटे से बच्चे से लेकर बूढ़े तक सबको गुस्सा आता है। गुस्से का परिणाम दूसरों पर होता है, उससे अधिक अपने शरीर पर होता है। हृदय और श्वास की गति भी तीव्र होती है मस्तिष्क का असंतुलन होता है निषेधात्मक भाव पैदा होते हैं, पारस्पारिक संबंध बिगड़ते हैं अंतःस्त्रावी ग्रंथियों पर गहरा असर होता है जीवन अस्त-व्यस्त हो जाता है क्रोध क्यों आता है? * अहंकार और अधिक अपेक्षाएँ रखने के कारण * प्रतिकूल परिस्थितियों और नकारात्मक भाव के कारण अनियमित जीवनचर्या और असमय भोजन करने के कारण स्नायाविक दुर्बलता के कारण क्रोध निवारण के लिए संयमित और समय पर भोजन करना भाषा का संयम रखना 'मुझे शांत रहना है' यह संकल्प रोज करना है जहां क्रोध का वातावरण है वहां से दूर जाना 100 से 1 तक उलटे अंक गिनना ठंडा पानी पीना रोज दीर्घ श्वास का प्रयोग करना ललाट पे जहां बिंदी लगाते हैं उसे ज्योति केन्द्र कहते हैं, वहां आंखें बंद करके सफेद रंग का ध्यान करना भावना करें - 'क्रोध शांत हो रहा है, आवेग और आवेश शांत हो रहे हैं' शशांकासन करना माँ सरस्वती की उपासना व्यक्ति को ज्ञान-विज्ञान की विशेष प्राप्ति, कला और आहित्य में विशेष प्रवीणता एवं सभी लौकिक उपलब्धियों की प्राप्ति कराती है और बच्चों की बौद्धिक क्षमता में अभूतपूर्व परिवर्तन लाती है।
SR No.009544
Book TitleAao Jeena Sikhe
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAlka Sankhla
PublisherDipchand Sankhla
Publication Year2006
Total Pages53
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Education
File Size6 MB
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