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________________ आगामी कितने भव शेष हैं, यह मैं नहीं जानता । आगामी भवों में मेरा स्वरूप क्या होगा ? यह मैं नहीं जानता । (६७) अज्ञान से कलंकित मैं यह भी नहीं जानता कि इस जन्म में भी कितना जीवन शेष है । (६८) . जिसमें मैं आसक्त है, वह नाशवान है । जो अविनश्वर है, उसमें मेरी जिसमें मैं आसक्त हूँ, वह नाशवान है । जो अविनश्वर है, उसमें मेरी अनुरक्ति नहीं है । अविवेक ही सब दुःखों का मूल कहा जाता है । (६९) जो कुछ यहाँ उपार्जित किया है, वह यहीं रह जाएगा । मैं सब कुछ छोड़कर कहीं और स्थान में विवश होकर चला जाउँगा । (७०) ___ मैंने जो भी शुभ अशुभ उपार्जित किया है, वह मुझे अपने साथ ले जाना है । जो मेरे साथ आयेगा, वह शुभ है क्याँ ? (७१) शरीर, संपत्ति और कुटुम्ब साथ नहीं आते हैं। दू परलोक में देवता और गुरू भी साथ नहीं आते । (७२) तृतीय प्रस्ताव
SR No.009509
Book TitleSamvegrati
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPrashamrativijay, Kamleshkumar Jain
PublisherKashi Hindu Vishwavidyalaya
Publication Year2009
Total Pages155
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size1 MB
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