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________________ ये विचार (मानसिक संकल्पनाएँ) कर्म के बन्ध का कारण होते हैं। बन्धे हुए कर्म इन विचारों को जन्म देते हैं। इन दोनों के अन्योन्याश्रय सम्बन्ध के कारण ही संसारचक्र चलता रहता है । अन्योन्याश्रय सम्बन्ध का अर्थ है दोनों एक दूसरे के प्रति कारण हैं। विचारों से कर्म का बन्ध होता है और पूर्वबद्ध कर्मों से विचार उत्पन्न होते हैं । इस प्रकार यह दुष्टचक्र चलता रहता है । (१३) अपूर्वकरण से यह आत्मा कर्म को नष्ट करने वाली, आत्मा का शोधन करने वाली उत्तम भावना को चित्त में धारण करने लगता है । (१४) राग-द्वेष मुझे क्यों होते हैं ? उनका आरम्भ कहाँ से हुआ है ? उनसे कितने अनर्थ होते हैं ? उनका नाश कैसे सम्भव है ? (१५) क्या राग-द्वेष के वशीभूत हुई वर्तमान अवस्था मेरे सुख का कारण है या फिर इनको त्यागने से ही वास्तविक सुख का उदय होगा ? (१६) क्या मैं राग-द्वेष स्वरूप हूँ अथवा उनसे भिन्न हूँ? मेरे उपर इन समस्त दुःखों का आगमन किस कारण है ? (१७) यदि मैं उनसे भिन्न हूँ, तो वे रागद्वेष भूत की तरह मेरे पीछे क्यों लगे हुए हैं ? क्या राग द्वेष आदि से भिन्न कोई सुख देने वाला मार्ग है ? (१८) प्रथम प्रस्ताव
SR No.009509
Book TitleSamvegrati
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPrashamrativijay, Kamleshkumar Jain
PublisherKashi Hindu Vishwavidyalaya
Publication Year2009
Total Pages155
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size1 MB
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