SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 123
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ पाँचवा प्रस्ताव प्रायशः मतिज्ञान, श्रुतज्ञान और मोहनीय के कारण सुख और दुःख होते हैं । इन तीनों के नाश से सुख-दुःख नष्ट हो जाते हैं । (१) स्वभाव से ही मतिज्ञान, श्रुतज्ञान अपूर्ण है। उनसे उत्पन्न ज्ञान भी अपूर्ण होता है। फिर सुख आदि भी अपूर्ण क्यों नहीं होंगे ? (२) केवल ज्ञान होने पर मति और श्रुत ज्ञान नष्ट हो जाते हैं । मोहनीय के नष्ट हो जाने पर सुख और दुःख नष्ट हो जाते हैं । (३) जब तक मति आदि ज्ञान है, तब तक पूर्ण ज्ञान प्राप्त नहीं होता । उसी प्रकार जब तक मोहनीय कर्म है, तब तक पूर्ण सुख प्राप्त नहीं होता । (४) प्रश्न :- सुख और दुःख दोनो ज्ञान के अनुभव है। मोहनीय के नष्ट होने पर सिर्फ सुखात्मक ज्ञान उत्पन्न होता है । (५) दुःखात्मक ज्ञान का अभाव यदि माना जाए तो ज्ञान का पूर्णत्व कैसे माना जा सकता है । (६) पाँचवा प्रस्ताव १०५
SR No.009509
Book TitleSamvegrati
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPrashamrativijay, Kamleshkumar Jain
PublisherKashi Hindu Vishwavidyalaya
Publication Year2009
Total Pages155
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size1 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy