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________________ २८४ पञ्चास्तिकाय परिशीलन है और दूसरों का भी ज्ञान नहीं है। जबकि आत्मा स्वयं को भी जानता है और परमाणु आदि पर को भी जानता है। ___ एक परमाणु एक प्रदेश में है तथा अपने रूपादि गुणों से कभी भी अलग नहीं होता। परमाणु एक प्रदेशी होते हुए अपने गुणों से रहित नहीं है। यद्यपि नीचली दशा में अर्थात् छद्मस्थ दशा में परमाणु प्रत्यक्ष दिखाई नहीं देता। वह प्रत्यक्ष तो केवली के हैं तथापि छद्मस्थ दशावाले उन जीवों के जिन्हें अपने द्रव्य गुण की एकता का विश्वास हुआ है तथा जिन्होंने स्वभाव का आश्रय लिया है तथा जिन्हें स्वसंवेदन ज्ञान प्रगट हुआ है; उसके ज्ञान में भले परमाणु प्रत्यक्ष नहीं दिखता तो भी ज्ञान अनुमान करता है कि जो यह स्कन्ध दिखाई देता है, वह बहुत से परमाणुओं का पिण्ड है। इसमें से टुकड़े होते-होते जो अन्तिम अंश रहता है, वह परमाणु है। वह परमाणु एक प्रदेशी होने पर भी अपने प्रदेशों से जुदा नहीं है तथा वह स्पर्श आदि गुणों को अवकाश देने में समर्थ हैं। गुण-गुणी के प्रदेश जुदे नहीं हैं, इससे गुणी गुणों को अवकाश देता है।" इसप्रकार गुरुदेव श्री ने परमाणु तथा प्रदेश का अनेक दृष्टिकोणों से स्पष्टीकरण करके समझाया है। परमाणु एक प्रदेशी है, नित्य है स्कन्धों का भेदन करने वाला है एवं काल तथा संख्या का विभाजन करने वाला है। परमाणु रूपादि गुणों से रहित नहीं है। काल का विभाजक है। अवकाश नहीं है, सावकाश भी नहीं है। यह परमाणु पुद्गल का सबसे छोटा भाग है। इस तरह इस गाथा में परमाणु के बारे में जानकारी दी गई है। गाथा-८१ विगत गाथा में परमाणु के एक प्रदेशीपने का कथन किया है तथा कहा है कि वह नित्य है अनवकाश नहीं है, सावकाश भी नहीं है। अब प्रस्तुत गाथा में कहते हैं कि ह्नद्रव्य परमाणु गुण व पर्यायवान है। मूल गाथा इसप्रकार है ह्र एयरसवण्णगंधं दोफासं सद्दकारणमसदं । खधंतरिदं दव्वं परमाणुं तं वियाणाहि।।८१।। (हरिगीत) एक वरण-रस गंध युत, अर दो स्पर्श युत परमाणु है। वह शब्द हेतु अशब्द है, स्कन्ध में भी द्रव्याणु है।।८१|| वह परमाणु एक रसवाला, एक वर्ण वाला, एक गंध वाला तथा दो स्पर्शवाला है; शब्द का कारण है, अशब्द है और स्कन्ध के भीतर है तथा परिपूर्ण स्वतंत्र द्रव्य है। टीकाकार आचार्य अमृतचन्द्र कहते हैं कि ह्र “सर्वत्र परमाणु में स्पर्श, रस, गन्ध, वर्ण सभी सहभावी गुण हैं जो कि निज पर्यायों सहित वर्तते हैं। जैसे कि ह्न पाँच रसपर्यायों में से कोई एक रस, पाँच वर्ण पर्यायों में से एक वर्ण, दो गंध पर्यायों में से एक समय में कोई एक गंध तथा शीत उष्णादि युगल में से कोई एक स्पर्श वर्तता है। इसप्रकार जिसमें गुणों का अस्तित्व कहा गया है ऐसा वह परमाणु शब्द स्कन्ध रूप से परिणमित होने की शक्तिरूप स्वभाववाला होने से शब्द का कारण है। एक प्रदेशी होने के कारण शब्द पर्यायरूप परिणत न होने से अशब्द है। ___ यहाँ यह बताया है कि स्कन्ध में भी प्रत्येक परमाणु स्वयं परिपूर्ण है, स्वतंत्र है, पर की सहायता से रहित है और अपने गुण पर्यायों में स्थित है। इसप्रकार यहाँ परमाणु द्रव्य में गुण-पर्याय होने का कथन है।" (151) १. श्री सद्गुरु प्रवचन प्रसाद नं. १७२, गाथा ८०. दिनांक १९-४-५२. पृष्ठ-१३६१
SR No.009466
Book TitlePanchastikay Parishilan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatanchand Bharilla
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year2010
Total Pages264
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size1 MB
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