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________________ गाथा-८० विगत गाथा में कहा गया है कि शब्द स्कन्धजन्य हैं और अनन्त परमाणुओं के मिलाप से स्कन्ध बनता है। प्रस्तुत गाथा में परमाणुओं के प्रदेशीपन का कथन है। मूल गाथा इसप्रकार है ह्र णिच्चो णाणवगासो ण सावगासो पदेसदो भेदा। खंधाणं पि य कत्ता पविहत्ता कालसंखाणं ।।८।। (हरिगीत) अवकाश नहिं सावकाश नहिं, अणु अप्रदेशी नित्य है। भेदक संघातक स्कन्ध का, अर विभाग कर्ताकाल का ।।८०|| परमाणु एक प्रदेशवाला है, नित्य है, अनवकाश नहीं है, सावकाश भी नहीं है। स्कन्धों का भेदन करनेवाला है और काल तथा संख्या को विभाजित करनेवाला है अर्थात् काल का विभाजन करता है और संख्या का माप करता है। ___ आचार्य अमृतचन्द्र टीका में कहते हैं कि ह्र यह परमाणु के एक प्रदेशी होने का कथन है। जो परमाणु एक प्रदेशी है, रूपादि गुण सामान्य वाला है, अविनाशी होने से नित्य है। वह कभी भी रूपादि गुणों से रहित नहीं होता। जगह देने की सामर्थ्य वाला है अतः सावकाश भी नहीं है। वह परमाणु स्कन्धों के बिखरने (टूटने) में निमित्त होने से स्कन्धों का भेदन करनेवाला है तथा स्कन्धों के संघात (मिलाने) का निमित्त होने से स्कन्धों का कर्ता है। वह परमाणु एक प्रदेश द्वारा गति परिणाम को प्राप्त होने के कारण काल का विभाग करता है अतः काल का विभाजक हैं।" पुगल द्रव्यास्तिकाय (गाथा ७४ से ८२) २८३ कवि हीरानन्दजी ने जो स्पष्टीकरण किया है, वह इसप्रकार है ह्न (दोहा) नित्य देइ अवकास कौं अनवकास परदेस । खन्द-विदारन करन फुनि, काल विभाग निवेस ।।३५१।। (सवैया इकतीसा ) रूपादि गुन की जातिरूप परदेस-अनू, सर्वदैव अविनासी तातै नित्य मोल है। रूपादि गुन कौं अवकास देइ दूजा अनू, __ पैठै नाहिं अनू मैं अनवकास डोलै है ।। खंधौ कौं विदारें और खंधौ को समारै सोइ, काल का विभाग करै समयादि तोले हैं। द्रव्य-खेत-भाव-संख्या ताही तें प्रगट होइ, सोई परदेस नाम जिनवानी बोले है।।३५२ ।। (दोहा) ताही एक प्रदेस करि संख्या सगरी जानि । दरव-खेत अरु काल की, भाव भेद की मानि ।।३५३।। जाकर दरवहि देखिए, सो कहिए परदेस । खेत रूप है वस्तु का, अलख निरंजन भेस ।।३५८।। कवि ने अपने काव्यों में परमाणु प्रदेश का कथन किया है। वे कहते हैं कि ह्र अणु अप्रदेशी अर्थात् एकप्रदेशी है व नित्य हैं, अवकाश नहीं हैं तथा सावकाश भी नहीं हैं। काल तथा संख्या को विभाजित करनेवाला है। गुरुदेवश्री कानजीस्वामी कहते हैं कि ह्र “अणु या परमाणु पुद्गल का छोटे में छोटा अर्थात् ऐसा सबसे छोटा भाग है, जिसका दूसरा टुकड़ा नहीं होता। परमाणु सदैव अविनाशी है, नित्य है ह्र ऐसा ज्ञानी जानता है। परमाणु तो पुद्गल हैं, अजीव है; इसकारण उसे अपना ज्ञान भी नहीं (150)
SR No.009466
Book TitlePanchastikay Parishilan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatanchand Bharilla
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year2010
Total Pages264
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size1 MB
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