SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 149
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ २८० पञ्चास्तिकाय परिशीलन कारण सामग्री उदित होती है, वहाँ-वहाँ वे वर्गणायें शब्दरूप से स्वयं परिणमित होती हैं; इसप्रकार शब्द नियतरूप से उत्पाद्य हैं, उत्पन्न कराने योग्य हैं; इसलिए वह स्कन्धजन्य है। शब्द नियतरूप से उत्पाद्य (उत्पन्न कराने योग्य) है, इसलिए वह स्कन्धजन्य हैं। इसी बात को कवि हीरानन्दजी कहते हैं ह्न ( दोहा ) सबद खंध-भव मानिए, अनु समूह का खंध । खंध-खंध मिलि धरषणा, उपजै सबद प्रबंध ।।३४८।। (सवैया इकतीसा ) अपने सुभावकरि शब्दरूप वर्गनाकै, जहाँ तहाँ नभ माहिं अस्तिभाव रूढ़े है। आतमा समीप लगै खंध सब्दरूप पुंज, काल पाय उदै होहिं धुनिभार गूढ़े है ।। उपादान धुनि खंध कारन वरग आन, धुनिकै बढ़ाउ तातै नभ माहिं छडै है। यातें सब्द परजाय कारन” होइ जाय, जथारूप जानै नाहिं मिथ्यामती मूढ़े है।।३४९ ।। (दोहा) एक सब्द संजोगरौं, सबद बरगना-पुंज । सबद रूप है परिनवै, जहँलगि पहुँचे गुंज ।।३५०।। अपने काव्य में कवि कहते हैं कि शब्द स्कन्ध जन्य हैं तथा स्कन्ध अणुओं का समूह है। स्कन्ध के घर्षण से शब्द उत्पन्न होते हैं। आगे सवैया में कवि कहता है कि अपने स्वभाव से शब्दरूप वर्गणाओं से यत्र-तत्र आकाश में वर्गणाओं का अस्तित्व है, आत्मा से संबंध होने पर स्कन्ध काल पाकर शब्द रूप हो जाते हैं। इसतरह एक शब्द के संयोग से शब्द वर्गणा का पुंज जहाँ तक आवाज पहुँचती है; शब्दरूप परिणमते हैं। पुगल द्रव्यास्तिकाय (गाथा ७४ से ८२) २८१ गुरुदेवश्री कानजीस्वामी कहते हैं कि - "शब्द स्कन्ध से उत्पन्न होता है। कोई भाव वाली वस्तु है जिसकी पर्याय पलटकर शब्द उत्पन्न होते हैं। अनन्त परमाणुओं के मिलाप से स्कन्ध होते हैं। उन स्कन्धों से परस्पर मेल होता है, तब भाषा वर्गणा के परमाणु शब्द रूप से परिणमते हैं। भावार्थ यह है कि द्रव्य कर्णेन्द्रिय के निमित्त से भाव कर्णेन्द्रिय के द्वारा जो आवाज जानने में आती है, उसे शब्द कहते हैं। शब्द ज्ञान नहीं है और ज्ञान शब्द नहीं है। वीतरागी का उपदेश भी परमाणु की पर्याय है वे शब्द अनन्त परमाणुओं के स्कन्ध से उत्पन्न होता है। जहाँ-जहाँ शब्द करने की बाह्य सामग्री का संयोग मिलता है, वहाँवहाँ शब्द योग्य वर्गणा स्वयमेव शब्दरूप से परिणमित होती हैं। शब्द के दो प्रकार हैं ह्न १. प्रायोगिक २. वैश्रसिक । प्रायोगिक वे हैं जो पुरुषादि की भाषा के प्रयोग से तथा वीणा, बांसुरी आदि से उत्पन्न होते हैं तथा मेघादि की गर्जनारूप से उत्पन्न होने वाले शब्द वैश्रसिक हैं। जब भाषा लायक परमाणु भाषारूप से परिणमित होते हैं तब बाह्य अनुकूल सामग्री को निमित्त कहा जाता है।" इसप्रकार यहाँ यह सिद्ध किया है कि शब्द पुद्गल की पर्याय है। १. श्री सद्गुरु प्रवचन प्रसाद, नं. १७०, पृष्ठ-१३६१-३४, दि. १२-४-५२
SR No.009466
Book TitlePanchastikay Parishilan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatanchand Bharilla
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year2010
Total Pages264
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size1 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy