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________________ गाथा- ७७ विगत गाथा में पुद्गल का स्वरूप कहा एवं उसके छः प्रकार बताये । अब प्रस्तुत गाथा में परमाणु का स्वरूप कहते हैं। मूलगाथा इसप्रकार है ह्र सव्वेसिं खंधाणं जो अंतो तं वियाण परमाणू । सो सस्सदो असो एक्को अविभागी मुत्तिभवो । । ७७ ।। (हरिगीत) स्कन्ध का वह निर्विभागी अंश परमाणु कहा। वह एक शाश्वत मूर्तिभव अर अविभागी अशब्द है ||७७|| सर्व स्कन्धों का जो अन्तिम भाग है, सबसे छोटा अविभागी अंश है, उसे परमाणु कहते हैं। वह अविभागी, एक, शाश्वत तथा मूर्तरूप से उत्पन्न होनेवाला है और अशब्द है। आचार्य अमृतचन्द टीका में कहते हैं कि यह परमाणु की व्याख्या हैह्र पूर्वोक्त स्कन्ध रूप पर्याय का जो अन्तिम भेद छोटे में छोटा अंश है, वह परमाणु है। वह एकप्रदेशी है, उसका कोई विभाग नहीं होता अतः वह एक है, नित्य है, अविनाशी है, अनादि अनंत है तथा रूप रस, गंध व स्पर्श से उत्पाद होने से मूर्त है, अशब्द है; क्योंकि शब्द परमाणु का गुण नहीं है। कवि हीरानन्दजी काव्य की भाषा में जो कहा ह्र वह इसप्रकार है ह्र ( दोहा ) सकल खंद का अन्त जो, तिसहि कहत परमानु । नित्य सबद बिन एक है, मूरत भागलु कान, ।। ३४२।। (146) पुद्गल द्रव्यास्तिकाय (गाथा ७४ से ८२) ( सवैया इकतीसा ) खंद रूप परजै का अंतभेद परमानु, सौई है विभाग बिना तातैं अविभागी है। निर्विभाग एक परदेस तातैं एक लसै, दर्वरूप नासै नाहिं सासुतां विभागी है ।। रूप आदि मूरति तैं मूरतीक नाम पावै, भाषा पर्याय तातैं भाषा रूप त्यागी है। सुद्ध गुण परजय सौं, सदा सुद्ध परमानु, २७५ सोई तौ प्रतीति आनै जाकै जोति जागी है ।। ३४३ ।। (दोहा) अविभागी परमानु यहु पुग्गल दरब जथार्थ । खंधरूप नाना लसै सो विभाव परमार्थ ।। ३४४ । । उक्त काव्यों में कवि कहते हैं कि ह्न स्कन्ध का अविभागी अंश परमानु है। वह परमानु नित्य है, शब्द रहित है तथा एक है, शाश्वत है। शुद्ध गुणपर्यायवान है। वह विभावभाव से नाना प्रकार के स्कन्धों में रहता है। गुरुदेवश्री कानजीस्वामी कहते हैं कि ह्न ये जो स्थूल स्कन्ध दिखाई देते हैं, ये कार्य हैं, इसलिए इनका कारण होना चाहिए। परमाणुओं में अनेकपना कायम नहीं रहता; क्यों एकत्र छूटे परमाणु एकत्र होने पर स्कंध बन जाते हैं तथा छूटे रहने पर एक-एक परमाणु प्रथक्-प्रथक् रहते हैं । गुरुदेव भावुक होकर कहते हैं देखो! यह सर्वज्ञ का विज्ञान है ! स्कन्ध में से छूटा होते ही जो परमाणु रह जाता है, वह स्वयं की तत्समय की योग्यता से ही रहता है। जीव के कारण पुद्गल में फेरफार नहीं होता । परमाणु के खण्ड नहीं होते । स्कंध का अंतिम भेद परमाणु है। वह
SR No.009466
Book TitlePanchastikay Parishilan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatanchand Bharilla
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year2010
Total Pages264
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size1 MB
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