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________________ पञ्चास्तिकाय परिशीलन ( सवैया इकतीसा) रूप-रस-गंध-पर्स षट्गुणी वृद्धि-ह्रास, __ पूरै-गलै धर्म तातै पुद्गल विसेष है। पुद्गल अनेक एक परजै अनन्य यातें, खंध परजाय नाम पुद्गल सलेख है ।। तैसैं थूल सूच्छिम है पुद्गल विभाव तामैं, भेद षट् तिनही कै लोकरूप वेख है। नानाकाररूप सृष्टि गोचर अगोचर है, जानै जिनवाणी वाला मूढ़ कौं अलेख है।।३४१ ।। उक्त पद्यों में कहा है कि बादर-सूक्ष्म पौद्गलिक स्कन्धों का नाम पुद्गल है। ये छः प्रकार के होते हैं। पुद्गल रूप, रस, गन्ध, स्पर्शवान हैं, षट्गुणी वृद्धि-हानि रूप हैं तथा ये पूरण-गलन स्वभावी होने से पुद्गल कहे जाते हैं। ___ अनन्तानन्त पुद्गलद्रव्य अनेक पुद्गल परमाणुओं के मिलाप या बिछुड़ने रूप पर्यायों से एक स्थूल स्कन्ध पर्यायरूप अथवा सूक्ष्म स्कन्ध पर्याय रूप होते हैं, जोकि मूलतः षट् भेदरूप हैं। इसी विषय का स्पष्टीकरण करते हुए गुरुदेवश्री कानजीस्वामी कहते हैं कि ह्र “जो ऐसा मानते हैं कि ह्न 'मैं पुद्गलों को परिवर्तन कर सकता हूँ' वे मूढ़ हैं। ऐसा मानने वालों को धर्म नहीं होता। यहाँ बताया है कि ह्रस्कन्धों में घटना-बढ़ना होता रहता है। इसलिए इन्हें पुद्गल कहते हैं तथा परमाणु को पुद्गल कहने का कारण बताते हुए कहा है कि परमाणुओं में स्पर्श, रस, गन्ध, वर्णादि गुणों में षट्गुणी वृद्धि-हानि, होती रहती है, इसलिए परमाणु भी पुद्गल हैं। एक परमाणु में प्रथम समय में एक गुणी चीकास हो, दूसरे समय में उससे अनन्तगुणी चीकास अर्थात् चिकनाई हो जाती है। दूध के परमाणुओं का स्वाद और स्पर्श आदि किसी थोड़ी मिठास में वृद्धि होकर बहुत पुद्गल द्रव्यास्तिकाय (गाथा ७६) २७३ मिठास और स्पर्श आदि रूप हो जाती है। कोई शीत परमाणु उष्ण हो जाता है, कोई मीठा परमाणु खट्ठा यह सब जड़ में होता है। तात्पर्य यह है कि पुद्गल स्कन्ध अपने स्थूल सूक्ष्म परिणामों के भेदों से तीन लोक में प्रवर्त रहा है। उसके आगम में छः भेद कहे हैं, जो इसप्रकार हैं। (१) बादर-बादर (२) बादर (३) बादर सूक्ष्म (४) सूक्ष्मबादर (५) सूक्ष्म (६) सूक्ष्म-सूक्ष्म । १. बादर-बादर :ह्न जो पुद्गल पिण्ड टुकड़े होने पर पुनः जुड़ते नहीं हैं। जैसे ह्न पत्थर, लकड़ी आदि। २. बादर : घी, तैल आदि प्रवाही पदार्थ जोकि प्रथक् होने पर पुनः मिल जाते हैं। ३. बादर-सूक्ष्म :ह्न जो दिखाई तो दें, परन्तु हाथ वगैरह से पकड़ में नहीं आते। जैसे चन्द्रा की चाँदनी। ४. सूक्ष्म-बादर :ह्न जो वस्तु आँख से नहीं दिखती घ्राण आदि से ग्रहण होती है ह जैसे गंध आदि । ५. सूक्ष्म :हू जो स्कन्ध इन्द्रिय ग्राह्य नहीं है, ऐसी कर्मवर्गणायें । ६. सूक्ष्म-सूक्ष्म :ह्र कर्म वर्गणाओं से भी अतिसूक्ष्म दो परमाणुओं का स्कन्ध, तीन अणुओं का स्कन्ध आदि । इसप्रकार इस गाथा में स्कन्धों के ६ भेद कहे। यहाँ ज्ञातव्य है कि ये भेद स्कन्ध के हैं। गोम्मटसार में जो पुद्गल के ६ भेद कहे, उसमें पाँच बोल तो ह्र ऊपर कहे अनुसार ही हैं, छटवाँ भेद एक परमाणु का लिया है।" इसप्रकार इस गाथा में पुद्गल द्रव्य का सामान्य कथन किया है। (145) १. श्री सद्गुरु प्रवचन प्रसाद, नं. १६६, दि. ..............पृष्ठ -१३१७
SR No.009466
Book TitlePanchastikay Parishilan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatanchand Bharilla
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year2010
Total Pages264
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size1 MB
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