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________________ २७६ पञ्चास्तिकाय परिशीलन सूक्ष्म-सूक्ष्म अर्थात् अतिसूक्ष्म होता है। वह परमाणु त्रिकाल अविनाशी है। एक परमाणु में शब्दरूप होने की योग्यता नहीं है। जब एक परमाणु दूसरे अनंत परमाणुओं के साथ मिले तो शब्दरूप होने की योग्यता आती है। परमाणु में स्पर्श, रस, गंध, वर्ण हैं; परन्तु उसमें शब्दरूप परिणमन की योग्यता नहीं है।” इसप्रकार इस गाथा, टीका एवं हिन्दी गद्य-पद्य में यह कहा है कि ह्र जो ये सूक्ष्म-स्थूल सब पुद्गल स्कन्ध दिखाई देते हैं, वे कार्य हैं। जो कार्य होता है, उसका कारण अवश्य होता है। कारण के बिना कार्य नहीं होता। देखो, स्कन्ध में से छूटकर जो पुद्गल परमाणु रूप रहता है वह स्वयं अपने कारण रहता है, जीव या पुद्गलादि के कारण नहीं रहता। यद्यपि परमाणु एक प्रदेशी हैं, तथापि उसमें स्वयं में स्कन्धरूप होने की योग्यता है। इसी कारण परमाणु को पुद्गलास्तिकाय कहा जाता है। वह परमाणु निरंश है; क्योंकि उस परमाणु के दो भाग नहीं हो सकते। गाथा-७८ विगत गाथा में परमाणु का स्वरूप कहा गया है। वहाँ कहा है कि ह्र सर्व स्कन्धों का अन्तिम भाग परमाणु है। अब प्रस्तुत गाथा में भी परमाणु का ही विशेष स्वरूप कहते हैं। मूलगाथा इसप्रकार है ह्र आदेसमेत्तमुत्तो धादुचदुक्कस्स कारणं जो दु। सो णेओ परमाणु परिणामगुणो सयमसद्दो।।७८।। (हरिगीत) कथनमात्र से मूर्त है, अर धातु चार का हेतु है। परिणामी तथा अशब्द जो परमाणु है उसको कहा।।७८|| जो आदेश मात्र से अर्थात् कथन मात्र से मूर्त हैं तथा जो पृथ्वी आदि चार धातुओं का कारण है, वह परमाणु है, जो कि परिणाम गुणवाला है और स्वयं अशब्द है। ____टीका करते हुए आचार्य अमृतचन्द कहते हैं कि ह्र परमाणु भिन्नभिन्न जाति के नहीं होते। मूर्तत्व के कारणभूत जो स्पर्श-रस-गन्ध-वर्ण हैं, उनका परमाणु से कथन मात्र ही भेद किया जाता है। वस्तुतः तो परमाणु एक प्रदेशी अर्थात् अप्रदेशी होता है तथा समस्त परमाणु समान गुणवाले होते हैं। किसी भी परमाणु में यदि एक भी गुण कम हो तो उस गुण के साथ अभिन्न प्रदेशी परमाणु ही नष्ट हो जायेगा; इसलिए समस्त परमाणु समान गुणवाले ही होते हैं। वे भिन्न-भिन्न जाति के नहीं हैं। इसी बात को कवि हीरानन्दजी कहते हैं ह्र (दोहा) कथन मात्र ही मूर्ति है, भूमि आदि का हेतु । परमानू परिनाम गुण, निज असवद गुन हेतु ।।३४५।। १. श्री सद्गुरु प्रवचन प्रसाद, नं. १६८, पृष्ठ-१३३१, दि. १५-४-५२ (147)
SR No.009466
Book TitlePanchastikay Parishilan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatanchand Bharilla
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year2010
Total Pages264
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size1 MB
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