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________________ ५२६ भगवतीसो 'अत्थे गइए बंधी न बंबइ बंधिस्सइ' आत्येकको जीयो यः पाप कर्म पद्धवान्, वर्तमाने न बध्नाति, अनागते च पापकर्मवन्धनं करिष्यति मोहोपत्रमावस्था, मतिपत्ता भव्यविशेपो जीवः पापं कम बद्धवान्, वर्तमाने काले च न बध्नाति, मोहोपशमक श्रेणीतः प्रपतनानन्तरं तस्य पापकर्मणोऽवश्यं बन्धनात् मोहोपशमे वर्तमान भव्यविशेषजीमाभिप्रायेण तृतीयो मङ्गो भगवता समर्थित इति । 'अत्थे. गइए बंधी ण वंधइ ण बंधिस्सई' अस्त्येकको जीवोऽवध्नात न वध्नाति वर्तमानका पन्ध करता है, परन्तु वह भविष्यत् काल में पापकर्म का बन्धक नहीं होता है । 'अत्थेगइप बंधी, न बंधइ, बंधिस्माई' ऐसा जो तृतीय भंग कहा गया है कि कोई एक जीव ऐसा होता है कि जिसने भूतकाल में पापकर्म का बन्ध किया होता है, परन्तु उसके द्वारा वर्तमान काल में पापकर्म का बन्ध नहीं किया जाता है, परन्तु भविष्यत् काल में उसके द्वारा पापकर्म का पन्ध होने लगता है ऐसा वह जीव मोह की उपशम अवस्था में वर्तता है, क्योंकि ऐसा जीव वर्तमान काल में तो पापकर्म का बन्ध नहीं करता है, वह भूतकाल में पाप कर्म का बन्ध कर चुका होता है और भविष्यत् काल में उसके द्वारा पापकर्म का बध होने लगता है, क्यों कि उपशमश्रेणी पर चढे हुए जीव का नियम से उसमें पतन होता है, और फिर वह पापकर्म का बन्धन कत्ती बन जाता है। . 'अत्थेगहए बंधी, ण वंधह, ण बंधिस्सइ' ऐसा जो यह चतुर्थ भंग है-कि कोई एक जीव ऐसा होता है कि जो भूतकाल में ही पापकर्म ___'अत्थेगइए बंधी न बंधा, बंधिस्सई' मा प्रभाधेनारे भी al કહેવામાં આવેલ છે, કે કે એક જીવ એ હોય છે કે-જેણે ભૂતકાળમાં પાપ કર્મને બંધ કરેલ હોય છે, પરંતુ તેનાથી વર્તમાન કાળમાં પાપ કર્મને બંધ કરવામાં આવતું નથી, પરંતુ ભવિષ્ય કાળમાં તેનાથી પાપ કર્મનો બંધ થવા લાગે છે. એ આ જીવ જે ઉપશમ શ્રેણી પર આરોહણ કરે છે, તે હોય છે, કેમકે–એ જીવ વર્તમાન સમયમાં તે પાપ કર્મને - બંધ કરતો નથી, તે ભૂતકાળમાં પાપ કમને બંધ કરી ચૂકેલ હોય છે, અને ભવિષ્ય કાળમાં તેનાથી પાપ કર્મને બંધ થવા લાગે છે, કેમકે-ઉપશમ , શ્રેણી પર ચઢેલા જીવનું નિયમથી તેમાં પતન થાય છે. અને તે પાપ 'भ'नामय ४२नारे। भने छे. _ 'अत्थेगइए बंधी, न बंधह, ण बंधिस्सई' मा प्रभावना रे याथे। म છે કે-કઈ એક જીવ એ હોય છે, કે જે ભૂતકાળમાં જ પાપ કર્મના
SR No.009326
Book TitleBhagwati Sutra Part 16
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1972
Total Pages708
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size50 MB
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