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________________ प्रमेयचन्द्रिका टीका श०२५ उ.७ सू०११ ध्यानस्वरूपनिरूपणम् 3 'लोभविसग्गे' लोभव्युत्सर्गः लोमत्याग इति । 'से तं कसायविसग्गे' सोऽयं पूर्वोक्तक्रमेण कषायभ्युत्सर्यो निरूपितः । 'से किं तं संसारविसग्गे' अथ का स संसारभ्युत्सर्गः, संसारष्युत्सर्गस्य किं स्वरूपं कियन्त भेदाः ? इति प्रश्नः उत्तरमाह - 'संसारविउग्गे' संसारव्युत्सर्गः 'चउन्विहे पन्नत्ते' चतुर्विधः मज्ञप्तः 'तं जहा ' - तद्यथा - 'नेरइयसंमारविसग्गे' नैरयिकसंसारभ्युत्सर्गः 'जाय देवसंसारविसग्गे' यावद् देवसंसारन्युत्सर्गः अत्र यावत्पदेन मनुष्य संसारन्युत्सर्गतिर्यक् संसारभ्युत्सर्गयोर्ग्रहणं भवतीति । 'से चं संसारविसग्गे' सोऽयं पूर्वोक्तक्रमेण संसारaan निरूपित इति । 'से किं तं कम्मविसग्गे' अथ कः स कर्मव्युत्सर्गः कर्मव्युत्सर्गस्य किं स्वरूपं कियन्तच भेदा १ करना 'ले प्तं कसायविउलग्गे' इस प्रकार से यह कपायन्युत्लग के विषय में कथन किया है 'से किं तं संसारविसग्गे' हे भदन्त ! संखारager का क्या स्वरूप है और कितने उसके भेद है ? उत्तर में प्रसुश्री कहते हैं- 'संसारविसग्गे चव्विहे पण्णत्ते' हे गौतम! संसारव्युत्सर्ग चार प्रकार का कहा गया है- 'तं जहा' जैसे'नेरइय संसारथिङलग्गे' नैरखिक संसार का त्याग करना 'जाव देव संसारविसग्गे' यावत् देव संसार का त्याग करना - यहां यावत्पद से 'मनुष्य संसारब्युसगं और तिर्यग् संसार व्युत्सर्ग' इन दो संसार व्युत्लग' का ग्रहण हुआ है । 'से तं' संसारविसग्गे' इस प्रकार से यह संसार व्युत्सर्ग के सम्बन्ध में प्रसुश्री ने कथन किया है । 'से किं तं कम्मचिउराणे' हे भदन्न ! कर्मव्युत्सर्ग का क्या स्वरूप है है और कितने उसके भेद हैं ? उत्तर में प्रभुश्री कहते है- 'कम्मविउ१२वे! 'लोभविउखगो' से सना त्याग उरखे। 'से त्त' कसायविसग्गे' या प्रभा આ કષાય વ્યુત્સર્ગના સબધમાં કથન કરેલ છે. 'से कि त संघारविसग्गे' हे लगवन् स'सार व्युत्सर्गतु शु स्व३५ છે ? અને તેના કેટલા ભેદો કહ્યા છે? આ પ્રશ્નના ઉત્તરમાં પ્રભુશ્રી કહે છે કે 'ससारविसग्गे चउव्विहे पण्णत्ते' हे गौतम । ससार व्युत्सर्गे यार प्रहारना उडेल छे. 'त' जहा' ते या प्रमाणे छे. 'तेरइयसंसारविसग्गे' नै यि संसार व्युत् र्थात् नैरयि संसार त्याग हवे. 'जाव देवसंसारविसग्गे' यावत् દેવસંસારને ત્યાગ કરવા અહિયાં યાવપદથી મનુષ્ય સ'સારવ્યુત્સગ અને तिर्थ संसारव्युत्सर्ग मा मे व्युत्सर्गो थडणु उराया छे. 'से त्त' कम्मविभो ' या अभाऐ आा स ंसार व्युत्सर्गाना सभधभां उथन छे. 'से किं त कम्म पिउगे' हे भगवन् व्युत्सर्गतु शु स्व३५ हे ? आते तेना डेटा बेहो ४९
SR No.009326
Book TitleBhagwati Sutra Part 16
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1972
Total Pages708
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size50 MB
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