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________________ भगवतीय 'से कि तं भावविउसग्गे' अथ का स भावव्युत्सर्गः, भावव्युत्सर्गस्य किं स्वरूपं कियन्तश्च भेदाः ? इति प्रश्नः, भगवानाह-'भावविउसग्गे विविहे पन्नत्ते' भाव. ध्युत्ससिविधः प्रज्ञप्तः । 'तं जहा' तद्यथा-'कलायविउसग्गे' कपायव्युत्सर्ग: पायाणां-क्रोधमानमायालोमाख्यानां चतुर्णा परित्यागः पायव्युत्सर्गः पथमा १ । 'संसार विउ सग्गे' संसारव्युत्सर्ग २, 'कम्मरिउलग्गे' कर्मव्युत्सर्ग:३, 'से किं तं कसायविउस' अप कस करायव्युत्मनः पायव्युन्म कि लक्षणं कियन्तश्च भेदाः । इति ना, भगवानाह-कसायबिउलग्गे चव्यिहे पन्नते' कपायाणां-क्रोधादीनां व्युत्सर्गस्त्याग चतुर्विधः प्राप्तः । 'त जवा' तघथा'कोइविउसर' क्रोधव्युत्सर्गः क्रोधस्याग इत्यर्थः । 'माणविउसगे मालव्युल्सना, मानत्याग इत्यर्थः । 'मायाविउसग्गे' मागव्युत्सर्गः मायायाः परित्याग इत्यर्थः, का क्या स्वरूप है ? और वह कितने प्रकार का कहा गया है ? उत्तर में प्रभुश्री कहते हैं-'आध विउसग्गे तिविहे पणत्ते' हे गौतम! मा. व्युत्लग तीन प्रकार का कहा गया है। 'तं जहा' जैसे-'मलाय विड. सग्गे' कषायव्युत्मर्ग-नोध मान माया और लोग इन्द्र कपायों का त्याग करना 'संसारविसग्गे' संसार का त्याग करना और 'कम्मविउसग्गे' कर्म का त्याग करना से कितं कलायविउहरो' हे भदन्त ! कषायव्युत्सग का क्या लक्षण है और कितने उलके भेद है ? उत्तर में प्रभुश्री कहते है-'करसायघिउलग्गे चउबिहे पण्णन्ते' हे गौतम ! कषाय व्युत्लगे चार प्रकार का कहा गया है 'तं जहा' जले 'कोह दिउसग्गे' क्रोध का त्याग करला 'माविउलग्गे' मानका त्याग करना, 'माया. विउसग्गे' माया का त्याग करना 'लोअघि उहाग्गे' लोभ का त्याग 'से कि त भावविउसग्गे' समपन् माप व्युत्सम २१३५ छ ? અર્થાત ભાવ વ્યુત્સર્ગ કોને કહેવાય છે? અને ભાવ વ્યુત્સર્ગના કેટલા ભેદે छ १ मा प्रश्नमा उत्तरमा प्रसुश्री ४९ छे 8-'भावविरसग्गे तिविहे पण्णत्ते' ७ गौतम ! लापव्युत्सर्ग त्र २२ ४९ छ, 'त जहा' ते । प्रभारी छ.-'कखायविउसगे' उपाय०युत्सा-हीथ, भान, माया भने सामाषायाने। त्यासवे. 'संसारविउसग्गे' ससाना त्या ४२व'कम्मविउचगे' मना त्यास ४२३। 'से कि त कसायविउसग्गे' 8 सगवन् उपाय व्युत्सगर्नु લક્ષણ છે? અને તેના કેટલા ભેદે કહ્યા છે? આ પ્રશ્નના ઉત્તરમાં પ્રભુશ્રી छ 8-'कसायविउसग्गे चउविहे पण्णत्ते' हे गीतम! पाय व्युत्सा या प्रश्न ४ छ 'त' जहा' ते मी प्रमाणे -'को विउलग्गे' अधन। त्या! ४२३। 'माणविउसग्गे' मानना त्याग ४२३। 'मायाविउसग्गे मायाना त्याग
SR No.009326
Book TitleBhagwati Sutra Part 16
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1972
Total Pages708
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size50 MB
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