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________________ ४६२ भगवतीस्त्र इति मनः, उत्तरमाह-'कम्मविउसग्गे अट्टविहे एन्नते' कर्मव्युत्सर्गः अष्टविधा पज्ञप्तः अष्टप्रकारकः कर्मव्युत्सों भवतीति । 'तं जहा तद्यथा-'णाणावरणिज्ज करमविउसग्गे' ज्ञानावरणीयकर्मव्युत्सर्गः, ज्ञानावरणीयकर्मणः परित्यागः । 'जाव अंतराइय कम्पविउसग्गे' यावत् अन्तरायकर्मव्युत्सर्गः:। अत्र यावत्पदेन दर्शनावरणीयवेदनीयमोहनीयायुकनामगोत्राणां पण्णां कर्मव्युतार्गाणां ग्रहणं भवतीति । 'से तं कम्पविउसग्गे' सोऽयं पूर्वोक्तनमेग कर्मव्युत्पः कथितः । से तं भावविउसग्गे' सोऽयं पूर्वकथितमकारेण भावव्युत्सर्गः प्रतिपादित इति । 'से तं अभितरए तवे' तदेतदाभ्यन्तरं तपो निरूपितमिति । 'सेवं भंते ! सेवं अंते ! त्ति' तदेवं भदन्त ! तदेवं भदन्त ! इति हे भदन्त ! संरताना स्वरूपविपये सग्गे अविहे पण्णत्ते' हे गौतम ! फर्मव्युत्सर्ग आठ प्रकार का कहा गया है। 'तं जहा' जैसे-'णाणावणिज कम्मवि उपनग्गे' ज्ञानाधरणीय फर्म का त्याग 'जाण अंतराहय कम्मविउसग्गे' यावत् अन्तराय कर्म का त्याग । यहां यावत्पद से 'दर्शनावरणीयव्युत्लग, वेदनीयन्धुत्सर्ग, मोहनीयव्युस्वर्ग आयुष्क व्युत्सर्ग नाम व्युत्सर्ग और गोत्र व्युत्सर्ग' इन कर्म व्युस्लों का ग्रहण हुआ है। 'से कमविउलग्गे' इस प्रकार से यह कर्मव्युवर्ग के सम्बन्ध में विचार है । 'ले भावधिउ. सग्गे' यहां तक इस पूर्वोक्त कथन के अनुसार सामव्युलन सा कथन समाप्त हुआ 'सेतं अभितरए तो और इसकी जाति में ही आभ्यन्तर तप का कथन भी समाप्त हो जाता है देवं भंते ! सेवं भंते ! त्ति' हे भदन्त ! संयतों के स्वरूप के विषय में जो आप देवानु. ४ा छ ? २॥ प्रश्न उत्तरमा प्रभुश्री ४९ छे -'संसारबिउराग्गे अदविहे पण्णत्ते' है गीतम! मव्युत्सर्ग 2418 ४२॥ उस छ, 'त' जहा' त म प्रमाणे छ. ‘णाणावरणिज्ज फम्मविउसगे' ज्ञानापरीय भनी त्यास 'जाव अंतराइय कम्मविउसग्गे' यावत् मतशय भनी त्यास माडियां पर५४थी शनाप२. ણીય વ્યુત્સર્ગ, વેદનીય વ્યુત્સર્ગ, મોહનીય વ્યુત્સર્ગ, આયુષ્ક વ્યુત્સર્ગ, नामव्युत्सग, भने मात्र व्युत्सम भा भव्युत्ता प्रहार ४२राया छे. 'से कम्मविउसग्गे' मा शत म भ व्युत्सना समयमा थन ४२० छे, से त' भावविरसग्गे' 21 Na | पूर्वरित ४थन प्रमाणे माप व्युत्सग ४थन ४२ छ 'सेत्त अभितरए तवे' मा प्रभारी माध्यत२ तपनु ५१३५ ४९ छे. 'सेव भंते ! सेव भंते त्ति' के भगवन् सयताना १३५ना समयमां આપ દેવાનુપ્રિયે કથન કરેલ છે. આ સઘળું કથન આમ વાકય પ્રમાણુરૂપ
SR No.009326
Book TitleBhagwati Sutra Part 16
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1972
Total Pages708
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size50 MB
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