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________________ प्रमेयचन्द्रिका टीका श०२५ उ.७ सु०१० आभ्यन्तरतपोनिरूपणम् ४५७ अणच्चालायगया' उपाध्यायानाम् उपाध्यायाः नाम-यत्सामीपमवाप्य सूत्राणि अधीयन्ते तेपायनत्याशातना, थेराणं अणच्चासायणया ५, स्थविराणामनत्या शातना५। 'कुलस्स अणच्चासायणया कुलस्य-समुदायस्य एकाचार्यसन्ततिरूप. स्य अनत्याशातनाः ६ । 'गणस्ल अणच्चासायणया' गणस्य-परस्परसापेक्षानेकसाधुसमुदायस्य अनस्याशातना ७ । 'संघस्स अणच्चासायणया' संघस्य-चतुर्विधस्य अनत्याशातना ८ । किरियाए अणच्चासायणया' क्रियाया अनत्याशातनता, अत्राहि-क्रिया विद्यते परलोकोऽस्ति च शरीरेन्द्रियादिव्यतिरिक्त आत्मा अस्ति च सकलालेशाधकलङ्कित सिद्धिपदमित्यादि मरूपणात्मिका गृह्यते यद्वा-ऐ-- पथिकादिका क्रिण, एतादृशक्रियाया अनत्याशातनेति । 'संभोगस्य अणच्चासायणया' संभोगस्य अनत्याशातना संभोगस्य गुणगुणिनोरभेदाद् एकसामा. करता है । उसका नाम आचार्य है । 'उवज्झायाणं अणच्चासायणया' जिनके पास पहुंच कर मुनिजन सूत्रों का अध्ययन करते हैं ऐसे उपाध्यायों की अनत्याशातनता४ 'थेराणं अणच्चासायणया ५' स्थविरों की अनत्याशातलता 'कुलस्स अणच्चासायणया६' एक आचार्य की सन्ततिरूप झुल की अलल्याशातनता 'गणरस अणच्चासायणया' परस्पर सापेक्ष अनेक साधु समूह की अनत्याशातनता ७ 'संघस्स अणच्चाखायणया' चतुर्विध संघ की अनत्याशातना ८ 'किरियाए अणच्चालायणया क्रिया की-परलोक है, शरीर और इन्द्रिय से व्य. तिरिक्त झाला है, तथा सकल क्लेशादिकों से अकलङ्कित सिद्धिपद है। इत्यादि प्ररूपणात्मिक क्रिया की अनत्याशातना ९ अथवा-ऐया. पक्षित आदि क्रिया की अनत्याशातना ९ 'संभोगस्स अणच्चासायण या' गुण गुणी के अभेदले संभोगी अर्थात् एक सामाचारीवाले साध छ. 'उवझायाण अणच्चाखायणया' भुनीनी पासे सूत्री अध्ययन छ, मेवा उपाध्यायोनी मनत्याशातना ४ 'थेराणं अणच्चासायणया'५ स्थपिशनी (वृद्धोनी) मनत्याशातनाय 'कुलस्स अणच्चासायणया ६ मायाय ना समाय३५ गनी मानत्याशातना ६ 'गणस्व अणच्चासायणया' ५२०५२ सापेक्ष-मपेक्षा मने साधु सभूखनी मनत्याशातना ७ 'संघस्स अणच्चासायणया' यतविध सधना मनत्याशातन ८ "किरियाए अणच्चासायणया' यानी-मेट -पस શરીર અને ઇન્દ્રિયથી જ આત્મા છે, તથા સકલ કલેશોથી નિષ્કલંક એવું સિદ્ધિ પદ છે વિગેરે રૂપ પ્રરૂપણની અનન્યાશાતના ૯ અથવા એયપથિક विगेरे टियागोनी मनत्याशातना ६ 'संभोगस्स अणच्चासायणया' शुशुशीन। અભેદથી સ ભોગ અર્થાત્ એક સામાચારીવાળા સાધુની અથવા એક भ० ५८
SR No.009326
Book TitleBhagwati Sutra Part 16
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1972
Total Pages708
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size50 MB
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