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________________ भगवतीस्त्र २०० प्रकृतीरुदीरयति, 'अट्ठ उदीरमाणे पडिपुन्नाओ अढ कम्मपगडीओ उदीरेह' अष्ट. विधकर्मप्रकृतीरुदीरयन् परिपूर्णा अप्टकर्मवृत्तीमदीग्यनि 'छ उदीरेमाणे आउवेयणिज्जबज्जाओ छ कम्मपगडीओ उदीरे' पदकर्मप्रकृतीन्दीरयन, आयुष्कवेद नीयकर्मप्रकृतिर्वजिताः पढे कर्यपकृतीरुदीरयति । 'पडि से चयापीले एवं चेत्र' प्रतिसेवनाकुशीलोऽपि एबमे-बक्कुशादेव प्रतिसेवनाकुगीलोऽपि, सप्तानामष्टानां पण्णां वा कर्मणामुदीरको भवति तत्र सप्त कर्म उदीरयन आयुटकवजिताः सप्तकर्मप्रकृतीरुदीरयति अष्टउदीरयन् परिपूर्गा अष्टकर्मप्रकृतीग्दीरयति पइविध है-तय आयु कर्म को छोडकर अवशिष्ट सानकर्म प्रकृनियों की उदी. रणा करता है । 'अट्ट उदीरेमाणे पडिपुन्नाओ अमम्प्रपगडीओ उदी. रेह' जथ वह आठक्षम प्रकृतियों का उदीरक होना है तब वह सम्पूर्ण ज्ञानावरणादिक आठ कर्मप्रकृतियों की उदीरणा करना है। 'छ उदीरेमाणे आउयवेयणिजबजाओ छ कम्मपगडीओ उदीरेह' और जब वह छह कर्म प्रकृतियों का उदीरक होता है-तब वह आयु और वेदनीयकर्म प्रकृतियों को छोड कर पाकी की छह कर्म प्रकृनियों की उदीरणा करता है। 'पडिसेवणाकुमीले एवं चेय' प्रनिलेवनागील भी एकुश की तरह सात आठ अथवा छर, फर्मप्रकृतियों की उदीरणा करता है । लान कर्मवकृतियों का उदीरक होने पर घर आयुकर्म को छोडकर अवशिष्ट ज्ञानाचरण, दर्शनावरण, वेदनी, मोहनीय, नाम, गोत्र और अन्तराय इन कर्मप्रकृतियों का उदीरकोना है। आठ कर्म प्रकृतियों का जन्न यह उदीक होना है। तप यात पूरी आठ की आठ કર્મ પ્રકૃતિને ઉકીરક-ઉદીરણા કરવાવાળ હોય છે, ત્યારે તે આયુકર્મને छोडीन, मीनी सात ४ प्रतियानी ४२ छे. 'अतु उदीरेमाणे पडि पुन्नाभो अट्ट कम्मपगडीओ उदीरेइ' क्यारे ते माह भ प्रतियानी ! કરે છે, ત્યારે તે સંપૂર્ણ જ્ઞાનાદિ આઠ કર્મ પ્રકૃતિની ઉદીરણ કરે છે. ' उदीरेमाणे आउयवेयणिज्जवज्जाओ छ कम्मपगडीओ उदीरेई' भने न्यारे ते છ કર્મ પ્રકૃતિની ઉદીરણા કરે છે, ત્યારે તે આયુ અને વેદનીય કર્મ प्रतियान छोडीने पाठीनी छ भ प्रतियानी जीरा ४२ छे. 'पडिसेवणा कुसीले वि एव चेव' प्रतिसेवना मुशीत पY मधुशना ४थन प्रमाणे सात, આઠ અથવા છ કર્મ પ્રકૃતિની ઉદીરણ કરે છે. જ્યારે તે સાત કમ પ્રકતિની ઉદીરણા કરે છે, ત્યારે તે આયુકર્મને છોડીને બાકીની જ્ઞાનાવરણુ, દર્શનાવરણ, વેદનીય, મેહનીય, નામ, ગોત્ર, અને અંતરાય આ સાત કર્મ પ્રકૃતિની ઉદીરણ કરે છે. અને જ્યારે તે આઠ કર્મ પ્રકૃતિની ઉદીરણા
SR No.009326
Book TitleBhagwati Sutra Part 16
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1972
Total Pages708
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size50 MB
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