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________________ प्रमेयचन्द्रिका टीका श०२५ उ.६ सू०१० विंशतितम परिमाणद्वारम् १९९ सायस्थानस्याभावात् किन्तु पूर्व तत्सकृतिद्वयमुदीर्य पुलाकतां प्राप्नोत्यत स्ते द्वे अत्र नो दीरयतीति, एवमुत्तरत्रापि यो याः कर्मप्रकृतीनोंदीरयति स ताः कर्मप्रकृती: पूर्वमुदीर्य वकुशादिरूपतां प्राप्नोतीत्येवं ज्ञातव्यम् 'वउसे पृच्छा' बकुंशः पृच्छा बकुशः खलु भदन्त ! कति कर्मप्रकृतीरुदीरयतीति पृच्छा-प्रश्नः । भगवानाह'गोयमा' इत्यादि, 'गोयमा' हे गौतम ! 'सत्तविहउदीरए वा अढविह उदीरए या' वा छबिडउदीरए वा' सप्तविधर्मपकनेरुदीरको वा अष्टविधर्मपकृतेरुदीरको वा षट्विधर्मप्रकृतेरुदीरको वा भवतीति । 'सत्तउदीरेमाणे आउयदज्जाश्री सत्तकम्मपगडीओ उदीरेइ' सप्तविधर्म पकृतीरुदीरयन् अयुष्मवर्जिताः सप्तकर्मआयु और वेदनीय कर्म की उदीरणा नहीं करता है क्यों कि उसके इस प्रकार के अध्यवसाय स्थान नहीं होते हैं। किन्तु वह पहिले उन दोनों की उदीरणा करके पुलाक अवस्था को प्राप्त करता है । इसलिये वह पुलाक यहां उन दो की उदीरणा नहीं करता है। इसी प्रकार आगे भी जिन २ प्रकृतियों की उदीरणा नहीं करता है उन २ फर्म प्रकृतियों को पहिले उदीरण कर पुलाक आदि अवस्था को प्राप्त करता है ऐसा समझना चाहिये। — 'यउसे पुच्छा' हे भदन्त ! यकुश कितनी कर्म प्रकृतियों की उदी रणा करता है ? उत्तर में प्रभुश्री कहते हैं-'गोयमा! सत्तविह उदीरए वा अट्टविह उदीरए वा छव्विह उदीरए या' हे गौतम ! बकुश सान. कर्म प्रकृतियों की अथवा आठ कर्म प्रकृत्तियों की अथवा छहकर्म प्रकतियों की उदीरणा करता है । 'सत्त उदीरेमाणे आउयवनाओ सत्त. कम्मपगडीओ उदीरेह' जय वह सातकर्म प्रकृतियों का उदीरक होता ઉદીરણ કરે છે. કહેવાનું તાત્પર્ય એ છે કે-પુલાક આયુ અને વેદનીય કર્મની ઉદીરણા કરતા નથી. કેમકે-તેમને એ પ્રકારના અધ્યવસાય સ્થાને હોતા નથી. પરંતુ તે પહેલા એ બનેની ઉદીરણ કરીને પુલાક અવસ્થાને પ્રાપ્ત કરે છે. તેથી તે પુલાક અહિયાં તે બેની ઉદીરણ કરતા નથી. એજ રીતે આગળ પણ જે જે પ્રકૃતિની ઉદીરણ કરતા નથી. તે તે કમ પ્રકૃતિને પહેલા ઉદીરણા કરીને પુલાક વિગેરે અવસ્થાને પ્રાપ્ત કરે છે, તેમ સમજવું જોઈએ. ' 'बउसे पुच्छा' 3 भगवन् ५४॥ ४ी में प्रकृतियाने ५५४२ छ ? मा प्रश्न उत्तरमा प्रभुश्री. ४३ छे -'गोयमा ! सत्तविह उदीरए वा अट्रविह उदीरए वा छव्विह उदीरण वा' 3 गौतम ! म सात ४म प्रतियानी અથવા આઠ કર્મ પ્રકૃતિની અથવા છ કર્મ પ્રકૃતિની ઉદીરણા કરે છે 'सत्त उदोरेमाणे आउयवज्जाओ खत्त कम्मपगड़ीओ उदीरेइ' या ते सात
SR No.009326
Book TitleBhagwati Sutra Part 16
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1972
Total Pages708
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size50 MB
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