SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 227
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ प्रमेयचन्द्रिका टीका श०२५ उ.६ सू०१० विशतितम परिमाणद्वारम् कर्ममकृतीरुदीरयन् ग्रुष्कवेदनीयवर्जिताः षट् मप्रकृतीरुदीरयतीति भावः । 'कसायकुसीले पुच्छा' कपायकुशीला खच भदन्त ! कति कर्मम तीरुदीरयतीति पृच्छा प्रश्नः । भगवानाह-'गोया' इत्यादि, 'गोयमा' हे गौतम ! 'सत्तविह उदीरए वा-अद्वविह उदीरए वा छवह उतीरए वा पंवविह उदीरए वा सप्तविंध कर्मप्रकृतेरुदीरको बा अष्टविधकर्षकृतेरुदीरको वा विधर्मपकृतेरुहीरको वा पञ्चविधर्मपकनेरीरको या भवति, तर 'सत उदौरेमाणे आउयबाजाओ सत्त: कम्मपगडीओ उदीरेई' सप्तकर्मप्रकृतीरुदीरयन् कपायकुशील आयुष्कवजिता सप्तकर्मपकृतीरुदीरयति, 'अट्ट उदीरेमाणे पडिपुनायो अट्ठ कम्मपगडीओ उदीरेइ कर्म प्रकृतियो का उदीरक होता है। और जब यह छह कर्मवकृतियों का उदीरक होता है तब यह आयु और वेदनीय कर्म प्रकृतियों को छोड़कर शेष ज्ञानावरण, दीनावरण मोहनीय, नाम, गोत्र और अन्तराय इन ६ कर्मस्कृतियों का उदीरक होता है । 'कलाय कुसीले पुच्छा हे भदन्त ! कषायकु शील कितनी कर्मप्रकृतियों की उदीरणा करना है. ? इसके उत्तर में प्रसुश्री कहते हैं-'गोत्रमा ! सत्तविह उतारिए वा, अटुंविह उदीरए वा, छरिवह उदीरए वा, पंचविह उदीरए वा' हे गौतम, कषायकुशील सात प्रकार की कर्म प्रकृतियों का आठ प्रकार की कर्म कर्मप्रकृतियों का छह प्रकार की कर्मप्रकृतियों का अथवा पांच प्रकार की कर्म प्रकृतियों का उदीरक होता है। 'मत्त उदीरेमाणे आउयवज्जाओ सत्स फम्रपगडीओ उदेरेह' जय ग्रह सात कर्म प्रकृतियों का उदीरक होता है तब यह आयुशन को छोड कर सातकर्म प्रकृतियों કરે છે, ત્યારે તે પૂરેપૂરી એ છે કે પ્રકૃતિની ઉદીરણા કરે છે અને જ્યાંછ કમ પ્રકૃતિની ઉદીરણ કરે છે, ત્યારે તે આયુ અને વેદનીય भी प्रतियोन छोडीन डीनी जनाव२६, शनाप२१, मोसनीय, नाम, गोत्र, भने त२.५ ॥ छ 3 प्रतियनी ही ४२ थे. 'सायकुसीले पच्छाइ मापन षाय शुशी मी प्रतियानी २९। ४२.. मा प्रश्न 6त्त२५i सुश्री ४९ छे है-'गोयमा ! मतविइ उदीरए वा ठविह उदीरए वा, छवित उदीरए वा, पंचविह उदीर वा' गौतम ! षाय शीत સાત પ્રકારની કમ પ્રકૃતિની ઉદી ણા કરે છે કે આઠ પ્રકારની કર્મ પ્રક તિની ઉદીરણ કરે છે, અથવા છ પ્રકારની કર્મ પ્રકૃતિની કે પાંચ ४२नी ४ प्रतियानी SER! ४२ छे. 'सत्त उदीरेमाणे आउयवज्जाओं सत्त कम्मपगडीओ उदीरेइ' क्यारे ते सात प्रतियनी Gl२९! १३ छ, ત્યારે તે આયુકર્મને છોડીને સાત કમ પ્રકૃતિની ઉદીરણા કરે છે भ० २६
SR No.009326
Book TitleBhagwati Sutra Part 16
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1972
Total Pages708
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size50 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy