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________________ १५० भगवती सूत्रे यं कालं वपरिणामे होज्जा' निर्ग्रन्थः खलु भदन्त ! कियटकालपर्यन्त मवस्थितपरिणामो भवेत् भगवानाह - 'गोयमा' इत्यादि, 'गोयमा' हे गौतम 1 'जहन्नेणं एकं समयं उक्को सेणं अंतोमुहुत्तं' जयन्येन एक समयमुन्कर्षेण अन्तर्मुहूर्त्तम् अवस्थित परिणामः पुन निर्मन्थस्य जघन्येन एकं समयं मरणसमये संभवादिति । 'सिणाए णं संते ! केवइयं कालं बडूमाणपरिणामे होज्जा' स्नातकः खलु मदन्त । कियन्तं कालं वर्द्ध मानपरिणामो भवेदिति प्रश्नः । भगवानाह - 'गोयमा' इत्यादि, 'गोयमा' हे गौतम! ' जहन्नेणं अंतोमुहुत्त उक्कोसेण वि अंगोमुत्तं' जघन्येन अन्तर्मुहूर्तम् उत्कर्षेणापि अन्तर्मुहूर्तमेव स्नातकोहि जय न्योत्कृष्ट । भ्यामन्तर्मुहूर्तमात्रमेव वर्द्ध मानपरिणामो भवेत् शैलेश्ववस्थायां वर्द्धमानपरिणामस्य अन्तर्मुहूर्त पर परिणामान्तरों का सद्भाव हो जाता है । 'केव कालं अवट्ठिय परिणामे होज्जा' हे भक्त ! निन्य कितने काल तक अवस्थित परिणामों वाला होता है ? उत्तर में प्रभुश्री कहते है- 'गोयमा ! जहन्नेणं एवकं समयं उक्को सेणं अनोमुत्तं' हे गौतम! निर्ग्रन्थ कम से कम एक समय तक और उत्कृष्ट से एक अन्तर्मुहूर्त्त तक स्थिरपरिणामों चाला रहता है । निर्ग्रन्थ का जघन्य एक समय सरण समय की अपेक्षा से होता है । 'सिणाए णं अंते ! केवइयं कालं वडूमाणपरिणामे होज्जा' हे भदन्त ! स्नातक कितने काल तक वर्धमान परिणामों वाला रहता हैं ? उत्तर में प्रभुश्री कहते हैं- 'गोयमा ! जहन्नेणं अनोमुत्तं उक्कोसेण वि अंतोन्तं' हे गीत ! स्नातक जवन्य से एक अन्तर्मुहूर्त्त तक और उत्कृष्ट से भी एक अन्तर्मुहूर्त्त तक वर्द्धमान परिणामवाला रहता है । क्यों कि शैलेशी अवस्था में उनके वर्धमान परिणाम एक अन्तर्मुहूर्त्त होज्जा' हे लगवन् निर्भन्ध डेटला आज सुधी अवस्थित परिणामे वाजा होय छे १ मा अश्नना उत्तरमा प्रभुश्री - 'गोयमा ! जहन्नेणं एक्क' समय छक्कोसेणं अंतोमुहुत्तं' हे गौतम! निर्थन्थ छाम छामे समय सुधी અને ઉત્કૃષ્ટથી એક અ'તર્મુહૂત' સુધી સ્થિર પરિણામેાવાળા હાય છે નિ न्धने धन्य मे समय भरगु समयसां होय छे. 'सिणाए णं भंते! केवइयां काल वड्ढमाणपरिणामे होज्जा' हे भगवन् स्नात उटसा भज सुधी वर्धमान परिणामो वाजा रहे हे १ मा प्रश्न उत्तरमा अनुश्री छे - 'गोयमा ! जहणेणं अतोमुहुत्त उक्कोसेणं वि अतोमुद्दत्त' हे गौतम! स्नात नथन्यथी એક અંતર્મુહૂત સુધી અને ઉત્કૃષ્ટથી પણ એક અન્તર્મુહૂત સુધી વધમાન પરિણામવાળા હાઈ શકે છે. કેમકે-શૈલેશી અવસ્થામાં તેને વધુ માન પરિ
SR No.009326
Book TitleBhagwati Sutra Part 16
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1972
Total Pages708
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size50 MB
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