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________________ प्रमैयचन्द्रिका टीका श०२५ उ.६०१० विंशतितम परिमाणद्वारम् १८९ सप्तसमयान् यावद् भवतीति भावः न पुनः पुलाकरय पुलाकत्ये मरणाभावाद पुलाकस्य हि मरणकाले कपायकुशीलत्वादिना परिणामादिति । यच पाक जुलाकस्य काळगमनं तद् भूतभावापेक्षयाऽवगन्तव्यमिति । 'णियंठे णं भो ! केवइयं कालं वडमाणपरिणामे होजा' निन्थः खलु भदन्त ! कियत्कालपर्यन्तं चर्द्धमानपरिणामो भवेदिति प्रश्नः । भगवानाह-'गोयमा' इत्यादि, 'गोयमा' हे ' गौतम ! 'जहन्नेणं अंतोमुहुत्तं उक्कोसेण वि अंतोमुहुत्त' जघन्येन अन्त. मुहूर्तम् उत्कर्षेणापि अन्तर्मुहूत्तमेव, निम्रन्थोहि जघन्योत्कर्षाभ्यामन्तर्मुहूर्त मात्रं बर्द्धमानपरिणामो भवति केवलज्ञानोत्पत्तौ परिणामान्तराभावादिति । 'केव--- परिणामवाले होते हैं। बकुश आदि में एक लमय वर्धमान परिणामता मरण से भी घटित हो सकती है। परंतु पुलाम में मरण से - एक समय वर्धमान परिणामता नहीं घटित होती है। क्योंकि पुलाक अवस्था में भरण नहीं होता है मरण के समय पुलाक - का परिणमन कषायकुशील आदि रूप से हो जाता है । जो पहिले पुलाक का मरण कहा गया है वह भूतभाव की अपेक्षा से कहा गया है। 'णियंठे णं भंते केवइथं झालं हमाणपरिणाले होज्जा' हे भदन्त ! निम्रन्थ कितने काल तक बईमान परिणामों वाला होता है ? उत्तर में प्रभुश्री कहते हैं-'गोधला ! जहन्मेणं अंगोमुत्तं उकोण वि अंतो. मुहत्त' हे गौतम । निन्य जघन्य से भी एक अन्त मुहूर्त तक वर्धमान परिणामों वाला होता है और उत्कृष्ट से भी एक अन्तर्मुहूर्त तक वर्धमान परिणामों वाला होता है। क्यों कि केवलज्ञान की उत्पत्ति होने.. વાળા હોય છે બકુશ વિગેરેમાં એક સમય વર્ધમાન પરિણામ પણ મરણથી પણ ઘટિ શકે છે. પરંતુ પુલાઇમાં મરથી એક સમય વર્ધમાન પરિણામપણું ઘટતું નથી. મરણ સમયે પુલાકનું પરિશ્નમન કપાય કુશીલ વિગેરે રૂપથી થઈ જાય છે. પહેલાં જે પુલાકનું મરણ કહ્યું છે, તે ભૂતકાળની અપેક્ષાથી 33छ. णियठे णं भवे ! केवइय काल वड्ढमाणपरिणामे होजा' 3 मापन નિગ્રંથ કેટલા કાળ સુધી વર્ધમાન પરિણામે વાળા હેય છે? આ પ્રશ્નના उत्तरभा प्रसुश्री गौतमस्वामीने छ -'गोयमा । जहन्नेणं अतोमुहत्तं उको.-. सेणं वि अंतोमुहत्त उ गीतमा निन्थ ४३न्यथी ५ को महत सुधी વર્ધમાન પરિણામોવાળા હોય છે. અને ઉત્કૃષ્ટથી પણ એક અંતર્મુહૂર્વ સુધી વર્ધમાન પરિણામેવાળા હોય છે, કેમકે કેવળજ્ઞાનની ઉત્પત્તિ થયા પછી मlan परिणामान असलाव 5 Mय है. 'केवइयं काल' अवटियपरिणामे
SR No.009326
Book TitleBhagwati Sutra Part 16
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1972
Total Pages708
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size50 MB
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