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________________ १८८ भगवतीस्त्र अव दिगपरिणाम होगा पुलाका क्रियत्कालपर्य तमस्थितपरिणामो भवेद स्थिरपरिणाम: फियत्कलपर्यन्तं भवेदिति प्रमः । भगवानाह-'गोयमा' इत्यादि, 'गोयमा' हे गौतम ! 'जहन्नेणं एवं जयं उपो सेणं सनसमया' जयन्येन एक समरसुत्कर्पण सप्त समयाः सप्तलममयतायि परिणापो भवेत् पुलाक इति । 'एवं जाव कसायकुतीले' एवं शाररूपा कुशीलः पुनायो र यकु प्रतिसेवनाकुशील. कायकुशीलानां त्रयाणामपि जघन्येने समयम् उन्लापनोऽन्नमुंहत वर्द्धमानहोगमानपरिणामस्वम् अवस्थितपरिणामत्वं तु जबन्धन एकमेव ममयम् उत्कर्षण एक लमय यहा सा गया है । और उत्कृष्ट ले परिणामों में वर्धमानता अन्तर्मुहर्त लग जातु स्वभाव ऐसा ही होने के कारण रहती है। बाद में यह नियम से अन्य परिणामवाला हो जाता है । 'केवयं कालं अवहिषपरिणामे होना' हे भदन्न पुलास फिगने काल तक अव. स्थितपरिणामबाला रहता है ? उत्तर में अनुश्री करते हैं-'गोयमा ! जहन्नेणं एक्कं लमयं उचकोसेणं लत्त लखया' हे गौतम ! पुलाक - जघन्य से एक समय तक और उत्कृष्ट ले सात समपतक अवस्थित परिणामों वाला होता है । 'एवं जाच असाथकुसीले वि' इसी प्रकार से पकुश प्रतिसेवनाकुशील और कपाशील ये साधु रन भी कम से कम एक लमयनक और अधिक से अधिक एक महतं तक पई मान परिणामोचाले और पीयमान परिणामोचाले होते हैं तथा ये जघन्य से एक समयलक और उत्कृष्ट से सातसयतम अवस्थित થી એક સમયે ત્યાં કહ્યો છે. અને ઉત્કૃષ્ટથી પરિણામમાં વર્ધમાન પશુ એક અન્તર્મુહૂર્ત સુની વરતુ-વભાવ એ જ દેવાને કારણે રહે છે, તે પછી नियमथी १ भान परियामा ६४ लय है, 'देवइय' काल अवद्विय - परिणाम होजा' 3 साप पुसा ४८सा सुधी अवस्थित परिणामवाणा २७ छ ? 241 प्रश्न उत्तरमा प्रमुश्री ४९ छे है-'गोग्रमा ! जहन्नेणं एक्क. समय उक्कोसेणं सत्त समया' 8 गौतम ! घुसा ४५-यथा को समय सुधी અવસ્થિત પરિણામોવાળા હોય અને ઉત્કૃષ્ટથી સાત સમય સુધી અવસ્થિત परिणाम हाय छे. छे. 'एवं जाव कसायसीले वि' मेरी प्रभाग બકુશ, પ્રતિસેવન કુશીલ અને કષાયકુશલ આ સાધુજને પણ ઓછામાં ઓછા એક સમય સુધી અને વધારેમાં વધારે એક અતહ સુધી વધે. માન પરિણામવાળા અને હીયમાન પરિણામે વાળા હોય છે. તથા આ જઘન્યથી એક સમય સુધી અને ઉત્કૃષ્ટથી સાત સમય સુધી અવસ્થિત પરિણામ
SR No.009326
Book TitleBhagwati Sutra Part 16
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1972
Total Pages708
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size50 MB
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