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________________ प्रमेयचन्द्रिका टीका श० १२ १० १ ० १ शकश्रावकरितनिरूपणम् ॥ चत्यम्-उद्यानम् , पानीव , वर्णकः-अस्य चैत्यस्य वर्णनम् औपपातिकमुत्रोक्त पूर्णभद्रचैत्यवर्णनवदसेयम् । 'तत्थ णं सावत्थीए नयरीए वहवे संखप्पामोक्खा-" समणोवासगा परिवति, अट्टा जाव अपरिभूया अभिगयजीवाजीवा जाव विह रंति' तत्र खलु श्रावस्त्यां नगर्या बहवः शङ्कप्रमुखाः-शङ्खपमुखः-प्रधानो येषां ते" तथाविधा:-श्रमणोपासकाः परिवसन्ति, आढयाः यावत्-बहुजनस्यापरिभूताः," भूमिगत जीवाजीवाः जीवतत्वाः, यावत् उपलब्धपुण्यपापाः इत्यादि विशेषणयुक्ता विहरन्ति-तिष्ठन्ति, 'तस्स णं संखस्स समणोवासगस्स उप्पला नामं भारिया:-- होत्या' तस्य खलु शङ्खस्य श्रमणोपासकस्य उत्पला नाम भार्या आसीत् , 'सुकुमाल कोट्टए चेहए' कोष्ठक नाम का चैत्य-उद्यानथा 'वष्णओ' इसका भी.. वर्णन औपपातिक सूत्र में कथित पूर्णभद्र चैत्य के वर्णन जैला जानना चाहिये। 'तत्थ णं सावत्यीए नयरीए बहवे संखप्पामोक्खा समणोवासगा परिवसंति, अडाजाव अपरिभूयाअभिगयजीवाजीराजाव विहरंति' उस.. श्रावस्ती नगरी में जिनमें शंख श्रमणोपासक मुख्य है ऐसे अनेक अभ.. णोपासक रहते थे, ये सब के सब विशेष संपत्तिशाली थे इन लष का प्रभाव भी बहत था-किसी की भी ऐसी शक्ति नहीं थी, जो. इनका थोडासा भी तिरस्कार कर सके जीव और अजीब के स्वरूप को पे सप. जानते थे यावत् पुण्य और पाप के फल से ये सब परिचित थे इत्यादि और भी पूर्वोक्त विशेषणों से ये युक्त थे 'तस्स णं संखस्स समणोवासंगरस उप्पला नाम भारिया होत्था' उस शंख श्रमणोपासक की. ५५ पान सभा तमा “कोदए चेइए" १४४ नामनु चैत्य : "अण्णमो" मी५पाति सूत्रमा माद्र चैत्यनुरे वन ४२वामा माय: छे मे ४४ यत्यनु न ५४ सभा. " तत्थ णं सावत्थीए नयरीए बहरे संबप्पामोक्ना समणोवासगा परिवसंति, अड्डा जाप अपरिभूया अभिगयजीवजीवा जाप विहरति" श्रीवरती नगरीमा मने श्राप२हेत. ता. તે શ્રાવકમાં શેખ નામનો શ્રાવક મુખ્ય હતો. તે શ્રાવકે ઘણા જ સમૃદ્ધિ, શાળી અને પ્રભાવશાળી હતા. તેમને તિરસ્કાર કરવાની હિંમત , કઈ પણ વ્યક્તિ કરતી નહીં તેઓ જીવ અને અજીવના સ્વરૂપને સમજતા હતા, - અને પુરુય અને પાપના ફલન પણ જાણકાર હતા આ સિવાયના બીજાં - પૂર્વોક્ત વિશેષથી પણ તેઓ યુક્ત હતા. Bol." तस्मण संघरस समणोवासगस्स उप्पछा नाम भारिया होत्था ' ते ५ भाने Savan नामनी नार्या सती. " सुकुमाल जाव सुरूवा, समणो. म० ८३ S
SR No.009319
Book TitleBhagwati Sutra Part 09
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1967
Total Pages770
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size45 MB
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