SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 682
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ६५८ भगवतीब जात्र सुख्वा समणोवासिया अभिगयजीवाजीवा जाव विहरड़' सा उत्पला सुकुमार यावद - पाणिपादा, सुरूपा श्रमणोपासिका, अभिगतजीवाजीवा - यावत्-विहरति 'तत्थणं सागत्थीए नगरीए पोक्खळी नाम समणोवासए परिवस, भद्रे अभिगयजाब विद्दरद्द' तत्र खलु श्रावस्त्यां नगर्यां पुष्कलीनाम- श्रमणोपासकः परिवसवि,आढचः, अभिगत यावत्(- जीवाजीवः यावत् उपलब्ध पुण्यपापः विहरति । ' तेमं कालेणं, तेणं समरणं सामी समोसढे । परिमा निग्गया जान पज्जुवासई' तस्मिन् काले, तस्मिन् समये स्वामी - महावीरः समवसृतः पर्यत् पर्युपास्ते 'तपणं ते भार्या थी जिस का नाम उत्पला था 'सुकुमाल जाव सुरूवा, समणोबासिया, अभिगयजीवाजीवा, जाव विहरइ ' इस के हाथ पैर बहुत सुकुमार थे देखने में यह बहुत सुन्दर थी यह भी श्रमणों की उपासिका भी जीव अजीव तत्त्व के स्वरूप की जानकार थी 'तत्थ णं सावत्थीर, नपरीए पोक्खली नामं समणोवासए परिवसइ, अड्डे अभिगय जाब fere' उसी श्रावस्ती नगरी में पुष्कली नामका दूसरा और भी. श्रमणोपासक रहता था यह भी भव्य और अपरिभूत भा जीब और अजीब तत्व का जानकार था पुण्य और पापके फलज्ञाता था, 'तेणं काखेणं, तेणं समरणं सामी समोसढे परिसा निग्गया, जाब पज्जुवासह ' उस कोल और उस समय में महावीर स्वामी वहां पर पधारे उनको वंदना और नमस्कार करने के लिये परिषद अपने २ स्थान से निकली - यावत् वामिमा, अभिगयजीबाजीवा, जाव विहरइ " तेना १२ हाथ भने बुध સુર હતાં તેનાં અમેપાંગેાનુ પૂર્વોક્ત વર્ણન અહી પણ ગ્રહણ કરવું તે ઘણી જ સુઉંદર હતી. તે પશુ શ્રમણેાની ઉપાસક હતી અને જીવ તથા અન્ तत्त्व, पाय, पुष्य साहिने लघुनारी हती. 66 are or arreste नयरीए पोक्की नाम भ्रमणोवासए परिवसर, अड्डे अभिगब जाब विइरइ " ये श्रावस्ती नगरीमां युष्ठनी नामनो जीले અમોપાસક રહેતા હતા તે પણ સમૃદ્ધિ સપન્ન માઢિ વિશેષણાવાળા, ઘોડ જ પ્રભાવશાળી, કાઈથી પણ ગાંજ્યા ન જાય એવે, જીવ અને મજીવ तत्त्वने लघुना भने पाप भने पुश्यना गने समन्नारी हतो. "तेणं काळेणं' क्षेम समपण' स्वामी समाटे, परिमा निग्गया, जाब पज्जुवासह " ते ठाणे ने તે સમયે શ્રમણુ ભગવાન મહાવીર સ્વામી તે નગરીના કાષ્ટક ઉદ્યાનમાં પધર્યો. તેમને બદણા નમસ્કાર કરવાને માટે પરિષદ નીકળો - પરિષદ દ્વારા પ્રભુના "
SR No.009319
Book TitleBhagwati Sutra Part 09
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1967
Total Pages770
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size45 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy