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________________ प्रमेयचन्द्रिका टीका श० ११४० १ सू० १ उत्पले जीवोत्पातनिरूपणम् २२५ निर्गच्छति धर्मोपदेश श्रुत्वा प्रतिगता पर्यंत्, ततो विनयेन शुश्रूषमाणो नमस्यन् प्राञ्जलिपुट: विनयेन पर्युवासीनो गौतमः भगवन्तम् एव - वक्ष्यमाणप्रकारेण अवादीत् - 'उप्पलैणं भंते ! एगपत्तए कि एगजीवे, अणेगजीवे ?' हे मदन्त ! उत्पलम् खलु कमलविशेषः एक पत्रकम् - एक पत्रं यत्र तदेकपत्रकम्, अथवा एकंच उत्पत्रम् एकपत्रम् एकपत्रं तदेव एकपत्रकम् तस्मिन् सति, उत्पलादेरेक पत्रावस्थायामित्यर्थः, एकपत्रकं चात्र किशलयावस्थाया अनन्तरम् अनयमितिभावः । किए एक जीयम् एको जीवो यत्र तदेकजीवम् ? किंवा अनेकजीवं मदति ? अनेकेजीवा यत्र तदनेकजीवम्, तथाविधमित्यर्थः, भगवानाह - 'गोयमा ! एनीवे, णो अणेग जीवे, तेण परं जे अन्ने जीवा उत्रवज्जति, तेणं णो राजीना, अणेगजीवा हे गौतम! उत्पलम् एकपनावस्थायास एक जीवं २ स्थान से निकली और महावीर स्वामी के पास आई, महावीर स्वामी ने धर्मदेशना दी. उसको श्रवण कर वह पीछे अपने २ स्थान पर चली गई. इसके बाद विनय के साथ गौतम ने दोनों हाथ जोड़कर नमस्कार करते हुए प्रभु से इस प्रकार पूछा- 'उप्पले णं भंते! एमपत्तए किं एगजीवे अगजी' है भदन्त ! उत्पल - कमलविशेष आदि जब एकपत्रावस्था वाला होता है (यह अवस्था किशलयावस्था (कपल) अनन्तर होती हैं) तब वह क्या एकजीव वाला एक है जीव जिसमें ऐसा होता है या अनेक जीव वाला - अनेक है जीव जिसमें ऐसा होता है ? इसके उत्तर में प्रभु कहते हैं-'गोयमा' हे गौतम! 'एगजीवे, जो अणेग जीये, लेण परं जे अन्ने जीवा उचवज्जंति, तेण णो एगजीवा-अगजीवा' एक पन्नावस्था में उत्पल एकजीव वाला होता है, अनेकजीब वाला नहीं તેમનાં દન કરવાને માટે તથા ધર્મોપદેશ સાંભળવાને માટે પરિષદ (પ્રખા) નીકળી મહાવીર પ્રભુને વદણા નમસ્કાર કરીને તથા તેમની દેશના સાંભળીને પરિષદ્ર પાછી ફરી ત્યાર બાદ ગૌતમ સ્વામીએ બન્ને હાથ જોડીને નમસ્કાર उरीने विनयपूर्व का प्रमाणे पृछ्यु – “उप्पलेण भसे । एगपत्तए कि एंगजीवे क्षणेगजीवे ? हे भगवन् उत्पहा (उभण विशेष) न्यारे अपत्रावस्थावालु ડાય છે, ત્યારે શુ' તે એક જીવવાળુ' હાય છે, કે અનેક જીવવાળુ હાય છે ? (જેમાં એક જ જીવ હાય તેને એક જીવવાળું અને અનેક જીવ હાય તેને અનેક જીવવાળુ' કહે છે) भहावीर अलुन। उत्तर- " गोयमा ! " हे गौतम! " एग जीवे णे। अगजीवे, वेण पर जे अन्ने उववज्जति, देणं ण एग जीवा-अणेग जीवा 21 એક ५० २९
SR No.009319
Book TitleBhagwati Sutra Part 09
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1967
Total Pages770
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size45 MB
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