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________________ प्रचन्द्रिका टीका श०१० उ०५ सू०२ चमरेन्द्रादीनामग्र महिषों निरूपणम् १८५ प्तानि तदेतत् त्रुटिकं नाम वर्ग उच्यते, इत्यादि शेषं तदेव - पूर्वोक्त्रदेव यथा चन्द्रस्य प्रतिपादितं तथैव प्रतिपत्तव्यम्, 'नदर' इंगाल डेंसर विमाणे इंगालगंसि सीहासणंसि, से तंचेव' नवरम् - विशेषस्तु - अङ्गारावतंस के विमाने, अङ्गारके सिंहासने इति वक्तव्यम्, शेषं तदेव पूर्वोक्त चन्द्रप्रकरणचदेव स्वयमूहनीयम् ' एवं जाव वियागस्स वि, एवं अट्ठासीतीएवि महाग्रहाणं भाणियन्त्रं जात्र भावके उस्स' एवं - पूर्वोक्तरीत्या यावत् - विकालकस्यापि महागहस्य चतस्रः अगमहिष्यः प्रज्ञप्ताः, तत्र खलु एकैकस्या अग्रमहिष्यः चतस्रः चतस्रो देवी साहरूयः परिवारः प्रज्ञप्तः ताभ्यः एकैका अग्रमहिषी अन्यानि चत्वारि चत्वारि देवीसहस्राणि परिवारं विकुर्वितुं प्रभुः इत्यादि चन्द्रप्रकरणोक्तवदेव ऊहनीयम् । एवं रीत्याऽशीतेरपि महाग्रहाणाम् अङ्गारक-विकालकत्रुटिक है। बाकी का इसका और सब कथन चन्द्र के परिवार जैसा किया गया है, 'नवरं इंगालवर्डेसए विभाणे इंगालगंसि सीहासणंसि, सेसं तं चेव' इसका जो विमान है उसका नाम अंगारावत सक है और सिंहासन का नाम अङ्गारक है । अवशिष्ट कथन चन्द्र प्रकरण के समान है । 'एवं जाव वियालगस्स वि, एवं अट्ठासीतीए वि महग्गहाणं भणियव्वं जाव भाव उस्स' इसी प्रकार का कथन विकाल महाग्रह का है. अर्थात् इस विकाल महाग्रह की चार पट्टरानियां हैं- इसमें एक एक पट्टरानी का देवी परिवार चार २ हजार का है. तथा इनमें से एक एक पहरानी ऐसी शक्तिवाली है जो वह इस परिवार के अतिरिक्त और भी चार २ हजार देवी परिवार की विकुर्वणा कर सकती है । इत्यादि सब कथन चन्द्र प्रकरण में कहे हुए कथन की तरह जानना चाहिये. इसी तरह का ખાકીનું સમસ્ત કથન ચન્દ્રના કથન પ્રમાણે સમજવુ. " नवरं इंगाल डेसए विमाणे इंगालगंसि सीहासणसि, सेसं तंचेव " परन्तु यन्द्रना उथन उरतां મગળમાં આટલી જ વિશેષતા છે-મહાગ્રહ મ*ગળના વિમાનનું નામ અંગારા વત...સક છે, અને સિંહાસનનું નામ અંગારક છે. ખાકીનું સમસ્ત કથન ચન્દ્રના કથન મુજખ સમજવાનુ છે, " एवं जाव वियालगस्छ वि, एवं अट्ठासीतीए वि महगगहाणं भाणियचे जात्र भावकेउ स " सेन अाउनु विहास महाथहेतु पशु उथन समन्न्वुः એટલે કે વિકાલ મહુગ્રહને પણ ચાર પટ્ટદેવિચે છે. તે દરેક પટ્ટવિયાના ચાર ચાર હજાર દેવીઓના પિરવાર છે, અને તે પ્રત્યેક પટ્ટરાણી મીજી ચાર ચાર હજાર દેવીઓનુ પેાતાની વૈક્રિય શક્તિવર્ડ નિર્માણ કરી શકે છે. ત્રિકાલ મહાગ્રહ વિષેનુ' ખાકીતુ સમસ્ત કથન ચન્દ્રના કથન પ્રમાણે સમજવુ‘,
SR No.009319
Book TitleBhagwati Sutra Part 09
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1967
Total Pages770
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size45 MB
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