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________________ भगवतीस्त्र कइ अग्गमहिसोओ पुच्छा' हे भदन्त ! अङ्गारस्य-मङ्गलस्य खलु महाग्रहस्य कति अग्रमहिष्यः प्रज्ञप्ताः ? इति पृच्छा, भगवानाह-' अज्जो ! चत्तारि अग्गमहिसीओ पण्णत्ताओ' हे आर्याः । अङ्गारस्य महाग्रहस्य चतस्रः अग्रमहिष्यः प्रज्ञप्ताः, 'तंजहा विजया १, वेजयंती २, जयंती ३, अपराजिया ४,' तद्यथा-विजया १, वैजयन्ती२, जयन्ती ३, अपराजिता ४ च । 'तत्थणं एगमेगाए देवीए सेसं तंव जहा चंदस्स' तत्र खलु चतसृषु अनमहिषीषु एकैकस्याः देव्याः चततः देवीसाहरूयः परिचारः प्रज्ञप्तः, ताभ्योऽयमहिपीभ्यः एकैका अग्रमदिपी अन्यानि चत्वारि चत्वारि देवी सहस्राणि परिवार विकुर्वितुं प्रभुः, एवमेव सपूर्वापरेण पोडशदेवीसहस्राणि प्रज्ञहै-वैसी जाननी चाहिये. यावत् वह मैथुन मंबंधी भोगों को भोगने के लिये समर्थ नहीं है यहां तक। अघ स्थविर प्रभु से ऐमा पूछते हैं-' इंगालरस णं भंते ! महग्गहस्ल कइ अग्गहिसीओ पण्णत्ताओ' हे भदन्त ! महाग्रह जो अङ्गार-मंगल है उमकी कितनी अग्रमहिपियों कही गई हैं ? इसके उत्तर में प्रभु कहते हैं-'अजो! चत्तारि अगमहिसीओ पाणतोओ' हे आर्यों ! महाग्रह मंगल की चार पट्टरानियां कही गई हैं। 'त जहा' जो इस प्रकार से हैं-'विजया, वेजयंती, जयंती, अपराजिया' विजया १, वैजयन्ती २, जयन्ती ३, अपराजिता. 'तत्थ णं एगमेगाए देवीए सेसं त चेव जहा चदस्स' इनमें से एक २ देवी का देवी परिवार चार २ हजार का कहा गया है तथा इनमें प्रत्येक में ऐसी शक्ति है जो वे उस शक्ति के द्वारा इल अपने परिवार के अतिरिक्त अन्य और भी ४-४ हजार देवी परिवार की विकुर्वणा कर सकती हैं। इस प्रकार से मंगल महाग्रह का देवी परिवार कुल १६ हजार का है। यह इसका वे स्थविर भगवतो मग विधे नायना प्रश्न पूछे छ- " इंगालस्स णं भंते । महग्गहस्स कइ अग्गमहिसीओ पण्णत्ताओ?" उ मन्! मा२ (म) नामनी रे मला छे, तेने दी पट्टएगो डी छ ? मडावीर प्रभुना उत्तर- "अज्जो चत्तारि अगमहिसीओ पण्णत्ताओ" माय ! महायड भने या२ पहेलियो ४४ी छे. “जहा" तभनां नाम नीचे प्रमाणे छ-" विजया, वेजयंती, जयंती. अपराजिया” (१) विल्या, (२) जयन्ती, (3) यन्ती मने (४) अपलिता. " तत्वणं एगमेगाए देवीए, सेसं तंचेव जहा चंदस्स" ते प्रत्ये: वीना यार या२ डलर वामाना परिवार છે, અને તે પ્રત્યેક દેવી પિતપોતાની વૈક્રિય શક્તિ વડે બીજી ચાર ચાર હજાર દેવીઓના પરિવાની વિકૃર્વ કરી શકે છે. આ રીતે મહાગ્રહ મંગળને દેવીપરિવાર ૧૬૦૦૦ને થાય છે. તે પરિવારને તેનું ત્રુટિક કહે છે. તેના વિષે
SR No.009319
Book TitleBhagwati Sutra Part 09
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1967
Total Pages770
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size45 MB
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