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________________ १९० भगवतीसूत्रे लेोहिताक्ष-शनैश्चराऽघुनिक-याधुनिक-कण-कण-कण कणक-कणवितानकफणसन्तानकादीनां भारकेतुपर्यन्तानां सूर्यप्रज्ञप्तिमोक्तानाम् अग्नहिप्यादिकं भणितव्यम् अतएव प्रोक्तम् 'जाव भावके उस्स' यावद् भाव केतोरिति । 'नवरं वडें मगा सीहासणाणि य सरिसनामगाणि, सेसं तं चेव' नवरं विशेपस्तु-अवतं. सकाः विमानावतंसकाः सिंहासनानि च सदृशनामकानि अवसे यानि, शेषं तदेव चन्द्रप्रकरणोक्तादेव अबसेयम् । स्थविराः पृच्छन्ति- 'सक्कस्स णं भंते ! देविंदस्स, देवरण्णा पुच्छा' हे भदन्त ! शक्रस्य खलु देवेन्द्रस्य देवराजस्य कति अग्रमहिन्यः प्रज्ञप्ताः ? इति पृच्छा, भगवानाह-'अज्जो! अट्ट अग्गम हिमीभो पण्णताओ' हे आर्याः ! शक्ररय अष्टौ अग्रमहिष्यः प्रज्ञप्ताः, तंजहा-पउमा १, सिवा२, कथन अट्ठासी महाग्रहों की - अंगारक, विकालक, लोहिनाक्ष, शनैश्वर, आधुनिक, प्राधुनिक, कण, कणक, कणकणक, कवितालक आदि भावकेतुतक के ग्रहोंकी-जो कि सूर्यप्रज्ञप्ति में कहे हुए हैं अग्रपहिवी आदि का जानना चाहिये। इस्ली यातको कहने के लिये 'जाव भावरेउस्स, कहा गया है । 'नवरं बडेंसगा सीहासणाणि य, सरिम नामगाणि, सेसं तं चेच' इनके विमानावतंसक, एवं सिंहासन ये सब जसे इनके नाम हैं उसी नाम के हैं। बाकी का और सब कधन चन्द्र प्रकरण में कहे हुए अनुसार है । अब स्थविर प्रभु से ऐसा पूछते हैं-'सकस ण भंते ! देविंदस्स देवरगणो पुच्छा' हे भदन्त ! देवेन्द्र देवराज शक्र की कितनी पट्टरानियां कही गई हैं ? इसके उत्तर में प्रभु कहते हैं-'अज्जो! अट्ठ अग्गमहिसोओ पण्णताओ' हे आवों । देवेन्द्र देवराज शक्र की " जाव भावके उच" मा सूain द्वा२सूबारे मे पात ५४८ ४३॥ छ । पाश्रीन A1२४, विses, aडिताक्ष, शनैश्वर, माधुनि, आधुनि, ४, કણક, કણકણક, કવિતાનક આદિ ભાવકેતુ પર્વતના ૮૮ ગ્રહોની વકતવ્યતા પણ આ પ્રમાણે જ સમજવી આ બધાં ગ્રહોને પણ ચાર, ચાર અમહિ. ષીઓ છે, ઈત્યાદિ સમસ્ત કથન ચન્દ્રના કથન પ્રમાણે સમજવું આ બધાં अडानी विशेष पतव्यता सूर्य प्रतिमा मावामा मावस छ "नवर वडे लगा खीहासणाणि य सरिसनामगाणि, सेसं तंचेव" यन्द्रनाथन २० मा મહાના કથનમાં એટલી જ વિશેષતા કડી છે કે આ દરેક ગ્રહના નામ પ્રમાણે જ તેમના વિમાનાવતં સકેના અને સિહાસનોનાં નામ સમજવા જોઈએ स्थविशना प्रश्न-" सकस्य णं भंते ! देविंदस्व देवरपणो पुच्छा" 1વન ! દેવેન્દ્ર, દેવરાજ શકને કેટલી અગ્રમહિષીએ કહી છે? महावीर प्रभुने। उत्तर-“ अज्जो ! अदु अगमहिसीओ पण्णत्ताओ"
SR No.009319
Book TitleBhagwati Sutra Part 09
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1967
Total Pages770
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size45 MB
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