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________________ प्रमेयचन्द्रिका टीका श०१० उ०५ सू०१ चमरेन्द्रादीनाम् अग्रमहिषीनिरूपणम १४१ भगवंतो जायसड़ा जायसंसया जहा गोयमसामी जाव पज्जुवासमाणा एवं वयासी'-ततःखलु ते स्थविराः भगवन्तो जातश्रद्धाः श्रद्धावन्तः, जातसंशयाः संशयवन्तः यथा गौतमस्वासिनो विशेषणानि तथैव यावत् शुश्रूपमाणा विनयेन नमस्यन्तः प्राञ्जलिपुटाः पर्युपासीनाः एवं वक्ष्यमाणमकारेण अवादिषुः-'चमरस्स णं भंते ! असुरिंदस्स अमुरकुमाररन्नो कइ अग्गम हिसीओ पण्णताओ ?' हे भदन्त ! चमरस्य खलु असुरेन्द्रस्य असुरकुमारराजस्य, कति कियत्यः, अग्रमहिष्यः प्रज्ञताः ? " भगवानाह-'अज्जो ! पंच अगमहिसीओ पण्णत्ताओ' हे आर्याः! स्थविराः ! पञ्च अग्रमहिष्यः मज्ञप्ताः, 'तंजहा-काली, रायी, रयणी, विज्जू , मेहा' तद्यथापाठका संग्रह हुआ है । 'तएणं थेरा भगवंतो जायसड़ा जायसंसया जहा गोयमसानी जाव पज्जुवासमाणा एवं बयासी' इसके पाद श्रद्धा युक्त उन स्थविर भगवन्तों ने संशययुक्त होने पर गौतमस्वामी की तरह "शुश्रूषमाणाः विनयेन नमस्यन्तः, प्राञ्जलिपुटाः, पर्युपासीना" इन विशेषणों से युक्त बनकर प्रभु से इस प्रकार पूछा-'चमरस्स णं भंते ! असुरिंदस्स असुरकुमाररन्नो कइ अग्गहिसीओ पण्णत्ताओ' हे भदन्त ! असुरेन्द्र असुरकुमारराज चमर के कितनी अग्रमहिषियाँ कही गई है ? अर्थात चमर के पट्टदेवियां कितनी हैं ? इसके उत्तर में प्रभु ने ऐला कहा-'अज्जो पंच अग्गमहिसीओ पण्णत्ताओ' हे आर्यो। स्थविरों । अप्सुरेन्द्र अस्तुरकुमारराज चमर की अग्रमहिषियां-पट्टदेवियां पांच कही गई है 'तं जहा'-काली, राघी, रयणी, विज्जू, मेहा' उनके જીવનની ઈચ્છા અને મરણના ભયથી રહિત હતા. ભગવાન મહાવીરથી દૂર પણ નહીં અને નજીક પણ નહીં એવું ઉચિત સ્થાને, ઉભડક આસને મસ્તક નીચુ રાખીને, ધ્યાનરૂપી કઠામાં લીન થઈને સયમ અને તપથી આમાને सावित ४२ता वियरता ता" "तएणं ते थेरा भंगवतो जायसड़ जहा गोयम. सामी जाव पज्जुवासमाणा एव वयासी" त्या२ मा श्रद्धायुत ते स्थविर - पता सडयुत थवाथी गौतम स्वाभानी रेम " शुश्रषमाणाः विनयेन नमस्यन्तः प्राञ्जलिपुटा , पर्युपासिना." भगवाननी सेवा ३२ता था, मन्ने हाथ लेडी विनयपूर्व प्रमुनी ५युपासना ४२di ४२i २मा प्रमाणे पूछ्यु -"चम रस्स णं भंते ! असुरि दस्स असुरकुभाररन्नो कइ अग्गमहिसीओ पण्णत्ताओ" के ભગવન અસુરેન્દ્ર, અસુરકુમારરાજ ચમરને કેટલી અગ્રમહિષીઓ(પટ્ટરાણીઓ) છે? ___महावीर प्रभुने। उत्तर--" अज्जो ! पंच अगामहिसीओ पण्णत्ताओ" . आयो! मसुरेन्द्र, मसुरमा२२।०१ यभरने पांय महिषास। छ “ तंजहा" तमना नाम नीय प्रभारी छ- 'काली, रायी, स्यणी, विज्जू , मेहा" (१) rel, . .
SR No.009319
Book TitleBhagwati Sutra Part 09
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1967
Total Pages770
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size45 MB
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