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________________ जय नाना प्रश्नोत्तर प्रदाय शुभ प्रश्न अंग व्याकरण गाय। इस अंग तनो जिय होय ज्ञान, सोपाठक होवे सुगुणवान।। ऊँ ह्रीं श्री अरहन्त देव कथित नष्ट मुष्टयादि क प्रश्नानामुत्तर प्रदायक षोडश सहस्राधिक त्रिनर्वात लक्ष 9316000 पद प्रमाणं प्रश्नव्याकरणांगस्य ज्ञाता उपाध्याय परमेष्ठिभ्योध्यं निर्वपामीति स्वाहा।।100 जय उद उदीरण कर्मजान है सूत्र विपाकसु उदय जान। इस अंग तनो जिय होय ज्ञान, सोपाठक होवे सुगुणवान।। ऊँ ह्रीं श्री अरहन्त देव कथित कमेणामुदयोदरीण सत्ता कथक चतुरशीति लक्षाधिक कोटी 1840000 पद प्रमाणं विपाक सूत्रांगस्य ज्ञाता उपाध्याय परमेष्ठिभ्योऽध्यं निर्वपामीति स्वाहा।। हरि गीता अंग एकादश विषेये, चार कोटि सुजानिए। अरु लक्ष पन्द्रह सहस दोहे पद महा यह मानिए।। पूजि हो हम भक्तियुत हो द्रव्य वसुविधि थालभर। सब दुरित हरि है नाथ मेरे में यजू हर्ष धर। ॐ ह्रीं श्री अरहन्त देव कथित द्वि सहस्राधिक पंचदश लक्ष चतुष्कोटी 41502000 पद प्रमाणमेकादशांगानां ज्ञाता उपाध्याय परमेष्ठिभ्योऽयं निर्वपामीति स्वाहा॥12॥ 14 पूर्वाणां अध्य (अडिल्ल) शास्त्र महा उत्पाद पूर्व जिन वाण है। जन्म नाश ध्रुव वस्तु महा गुण गान है।। उपाध्याय परमेष्ठि गुरु यह गावते। लेकर वसु विधि द्रव्य सु पूज रचावते।। ऊँ ह्रीं श्री अरहन्त देव कथित वस्सुनामुत्पाद व्यय ध्रौव्यादि कोटि 10000000 पद प्रमाणमृत्पाद पूर्वस्य ज्ञाता उपाध्याय देवेभ्योऽयं निर्वपामीति स्वाहा। 989
SR No.009254
Book TitleVidhan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorZZZ Unknown
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages1409
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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