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________________ जय उपासकाध्ययना अंगहोय जो श्रावक धर्मसु कहतसोय। इस अंग तनो जिय होय ज्ञान, सोपाठक होवे सुगुणवान।। ऊँ ह्रीं श्री अरहन्त देव कथित श्रावकाचार प्रकाशकं सप्तति सहस्राधिकैकादशलक्ष 1170000 पद प्रमाण उपासकाध्ययन अगस्य ज्ञाता उपाध्याय परमेष्ठिभ्योऽयं निर्वपामीति स्वाहा।।7। जय तीर्थंकर चौबीस जान हर तीर्थंकर के तीर्थ आन। जय दशदश होवे मुनि सुजान, उपसर्ग सहनकर शिव प्रयाण।। तिन कथा निरूपण है प्रसार, जय अन्तः कृत दश अंगसार। इस अंग तनो जिय होय ज्ञान, सोपाठक होवे सुगुणवान।। ऊँ ह्रीं श्री अरहन्त देव कथित तीर्थंकराणां प्रतितीर्थं दशदश मुनयो भवन्ति ते उपसर्गान सोठवा मोक्षयान्ति तत्कथा निरुपकमष्टाविंशति सहस्राधि त्रयोविंशति लक्ष 2328000 पद प्रमाणमन्तःकृत दशांगस्य ज्ञाता उपाध्याय परमेष्ठिभ्योध्यं निर्वपामीति स्वाहा।।8। चतुविंशति तीर्थंकर महान् हर तीर्थंकर के समय आन। दश दश मुनि हो उपसर्गवान पंचानुत्तर पद ले महान्।। तिन कथा निरूपण जन लुभाय आनुत्तर उपपादिक लहाय। इस अंग तनो जिय होय ज्ञान, सोपाठक होवे सुगुणवान।। ऊँ ह्रीं श्री अरहन्त देव कथित तीर्थंकराणां प्रतितीर्थ दश दश मुनयो भवन्ति ते उपसर्गान् सोढ्वा पंचानुत्तर पद पाप्नुवन्ति तत्कथानिरूपकं चतुर चत्वारिंशत सहस्राधिक द्विनवति लक्ष 9244000 पद प्रमाणमनुत्तरोप पादिकसस्य ज्ञाता उपाध्याय परमेष्ठिभ्योध्यं निर्वपामीति स्वाहा।।9। 988
SR No.009254
Book TitleVidhan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorZZZ Unknown
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages1409
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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