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________________ सप्त तत्व षट द्रव्य पदारथ जे कहै। पूरव है अग्राय नाय शुभ जेल है।। उपाध्याय परमेष्ठि गुरु यह गावते। लेकर वसु विधि द्रव्य सु पूज रचावते।। ऊँ ह्रीं श्री अरहन्त देव कथित अंगनामग्रभूतार्थ निरूपकं षण्णवति लक्ष 9600000 पद प्रमाणग्रायणीय पूर्वस्य ज्ञाता उपाध्याय देवेभ्योऽध्यं निर्वपामीति स्वाहा॥13॥ तीर्थंकर चक्रीस हरि शभ गाइयो। नाम वीर्य अनवाद चरित्र बताइयो।। उपाध्याय परमेष्ठि गुरु यह गावते। लेकर वसु विधि द्रव्य सु पूज रचावते।। ऊँ ह्रीं श्री अरहन्त देव कथित बलदेव चक्रवर्ति शक्र तीर्थंकरादि बलवरणकं सप्तति लक्ष 7000000 पद प्रमाण वीर्यानुवायद पूर्वस्य ज्ञाता उपाध्याय देवेभ्योऽयं निर्वपामीति स्वाहा।।14॥ सर्व वस्तु में सप्त भंग शुभ कहत है। अस्तिनास्ति परवाद नामवस लहत है।। उपाध्याय परमेष्ठि गुरु यह गावते। लेकर वसु विधि द्रव्य सु पूज रचावते।। ॐ ह्रीं श्री अरहन्त देव कथित जीवादि वस्त्वास्ति नास्ति चेतिप्रकथकं षष्ठि लक्ष 6000000 पद प्रमाणमस्ति नास्ति प्रवाद पूर्वस्य ज्ञाता उपाध्याय देवेभ्योऽयं निर्वपामीति स्वाहा।।15॥ अष्ट ज्ञान उत्पत्ति सुकारण जानिये। स्वामी ज्ञान प्रवाद सु पूरब मानिए।। उपाध्याय परमेष्ठि गुरु यह गावते। लेकर वसु विधि द्रव्य सु पूज रचावते।। ऊँ ह्रीं श्री अरहन्त देव कथित अष्ट ज्ञान तदुत्पत्ति कारण तदाधार पुरुष प्ररूपकमेंकोन कोटि 9999999 पद प्रमाण, ज्ञान प्रवाद पूर्वस्य ज्ञाता उपाध्याय देवेभ्योऽयं निर्वपामीति स्वाहा।।16॥ 990
SR No.009254
Book TitleVidhan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorZZZ Unknown
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages1409
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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