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________________ जय जीव थान जिसमें बताय जय स्थानाअंगसु बुद्धिगाय। इस अंग तनो जिस होय ज्ञान, सोपाठक होवे सुगुणवान।। ऊँ ह्रीं श्री अरहन्त देव कथित षड्द्रव्यकाद्युत्तरस्थान व्याख्यान कारक द्वाचत्वारिंशत सहस्र 42000 पद प्रमाण स्थानांगस्य ज्ञाता उपाध्याय परमेष्ठिभ्योध्यं निर्वपामीति स्वाहा ॥3॥ षड् द्रव्य त्रिलोकों का स्वरूप, है समवायांग सुकथ अनूप इस अंग तनो जिय होय ज्ञान, सोपाठक होवे सुगुणवान।। ॐ ह्रीं श्री अरहन्त देव कथित धर्माधर्म लोकाकाशैक जीवसप्त नरक मध्य विल जम्बू द्वीप सवार्थसिद्धि विमान नन्दीश्वर द्वीप वापिका तुल्यैक लक्ष्य योजन प्रमाण निरूपकं भव भाव कथकं चतुषष्टी सहस्राधिक लक्ष 1640000 पद प्रमाण समवायांगस्य ज्ञाता उपाध्याय परमेष्ठिभ्योध्यं निर्वपामीति स्वाहा॥4॥ जय अस्ति नास्ति का जान भंग, होवे व्याख्या प्रज्ञप्ति अंग । इस अंग तनो जिय होय ज्ञान, सोपाठक होवे सुगुणवान।। ऊँ ह्रीं श्री अरहन्त देव कथित जीव किमस्ति नास्तिवा इत्यादि गणधर कृत प्रश्न षष्ठीसहस्र प्रतिपादक अष्टाविंशति सहस्राधिक द्विलक्ष 228000 पद प्रमाण व्याख्या प्रज्ञप्ति अंगस्य ज्ञाता उपाध्याय परमेष्ठिभ्योध्यं निर्वपामीति स्वाहा॥5॥ जय तीर्थंकर गणधर चरित्र जो ज्ञातृ कथा वर्णे पवित्र । इस अंग तनो जिय होय ज्ञान, सोपाठक होवे सुगुणवान | ऊँ ह्रीं श्री अरहन्त देव कथित तीर्थंकर गणधर कथा कथिका षटपंचाशत सहस्राधिक पंचलक्ष 556000 पद प्रमाण ज्ञातृ कथा अंगस्य ज्ञाता उपाध्याय परमेष्ठिभ्योघ्यं निर्वपामीति स्वाहा॥6॥ 987
SR No.009254
Book TitleVidhan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorZZZ Unknown
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages1409
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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