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________________ वीर्याचार शक्ति को फोरे, शिवमग लहे कर्म अरि तोरे। याको करे अचारज सोई, तिनपद जजों फलै शिव होई।। ॐ ह्रीं श्री वीर्याचारसहितायै श्री आचार्यभक्ति भावनायै अध्यम् निर्वपामीति स्वाहा। अडिल्ल छन्द द्वादश तप दश धर्म षडावशि जानिये, तीन गुप्ति आचार पंच सरधानिये। ये छत्तीस गुन धरें आचाराज होय जी, तिनपद पूजों अध्यलेय मद खोय जी। ॐ ह्रीं षट् त्रिंशद् गुणसहितायै श्री आचार्यभक्ति भावनायै अध्यम् निर्वपामीति स्वाहा। जयमाला मुनियानन्द की चाल संघ के नाथ आचार्य सो होय हैं, तिन विषे मुख्य गुण तीस षट् सोय हैं। और गुण घने तिन, माहि शुभ पाईये, इन चरण-भक्तिफल, तीर्थपद पाइये।। मति श्रुत अवधि इन आदि होय ज्ञान जी, कहे भव्य जीवको भवान्तर जान जी। ___ मन विषं भक्ति के होय सो पाइये, इन चरणभक्तिफल, तीर्थपद पाइये।। कहे उपदेश जिस, जीव साता लहे, सुरग शिव राह निज, जान आनि को कह।। बिना कारण सकल, सत्त्वबन्धु पाइये, इन चरणभक्ति फल तीर्थपद पाइये।। सकल श्रुति जान अभि-मान ताके नहीं, फुरी बहु ऋद्धि गुण थूल तिन उर मही। तीन जगपूज्य बिनराग सम पाइये, इन चरण भक्तिफल, तीर्थपद पाइये।। 912
SR No.009254
Book TitleVidhan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorZZZ Unknown
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages1409
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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