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________________ काय थकी अघकाज न करे, ध्यानाध्ययन मांहि संचरे । कायगुप्ति आचारज ध्याय, तिनपद जजों सुभग फलदाय।। ऊँ ह्रीं श्री कायगुप्तिसहितायै श्री आचार्यभक्ति भावनायै अघ्यम् निर्वपामीति स्वाहा। ये ही तीन गुप्ति सुखकार, मनवचतन अघ रोनक हार। इनको करे अचारज सोय, तिनके पद पूजों मद खोय।। ॐ ह्रीं श्री त्रिगुप्तिसहितायै श्री आचार्यभक्ति भावनायै अघ्यम् निर्वपामीति स्वाहा। (बेसरी छन्द) ज्ञानाचार ज्ञान सुध आने, सकल पदारथ भेद बखाने । याको करे अचारज सोई, तिनपद जजों फलै सुध सोई।। ऊँ ह्रीं श्री ज्ञानाचारसहितायै श्री आचार्यभक्ति भावनायै अध्यम् निर्वपामीति स्वाहा। दर्शनाचार दृष्टि सुध लावे, दोष पच्चीस तहां नहिं पावे। याको करे अचारज सोई, तिनपद जजों फलै सुध होई।। ऊँ ह्रीं श्री दर्शनाचारसहितायै श्री आचार्यभक्ति भावनायै अघ्यम् निर्वपामीति स्वाहा। तेरह विधशुभ चारित धारें, सहे परीषह आप न हारे। याको करे अचारज सोई, तिनपद जजों फलै शिव होई ।। ऊँ ह्रीं श्री चारित्राचारसहितायै श्री आचार्यभक्ति भावनायै अध्यम् निर्वपामीति स्वाहा। तप बहु करे खेद नहिं आने, तपाचार सो अधगिरि भाने। याको करे आचारज सोई, तिनपद जजों फलै शिव होई।। ऊँ ह्रीं श्री तपश्चरणाचारसहितायै श्री आचार्यभक्ति भावनायै अध्यम् निर्वपामीति स्वाहा। 911
SR No.009254
Book TitleVidhan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorZZZ Unknown
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages1409
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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