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________________ ग्यारह लख, सत्तह सहस, पदधारी श्रुत ज्ञान। उपासका ध्यानांग से, श्रावक महिमावान।।7।। ऊँ ह्रीं उपासका ध्ययनांग जिनागम पठन पाठन गुण भूषिताय उपाध्याय परमेष्ठिने नमः अर्घ निर्वपामीति स्वाहा। प्रति तीर्थंकर के तीर्थ काल, जिनने उपसर्ग सहे भारी। उन सर्वश्रेष्ठ दश मुनियों की जीवन गाथा, जग हितकारी।। परिषद सहकर भव अन्त किया, जिनमें पाया शिवसौख्य अमल। यह अंग अंतकृत दश कहता, ऐसे मुनियों का वृत्त विमल।। लख तेविस अठविश सहस, पद धारी श्रुत ज्ञान। अंग अन्तकृत दश कहे, परिषह विजय महान।।8।। ऊँ ह्रीं अन्तकृद्दशांग जिनागम पठन पाठन गुण भूषिताय उपाध्याय परमेष्ठिने नमः अर्घ निर्वपामीति स्वाहा। प्रति तीर्थंकर के तीर्थ काल, जिनने उपसर्ग सहे भारी। ऐसे दश दशमनिराजों की, जीवन गाथा जग हितकारी।। जिन अन्तसमय हो समाधिस्थ, अनुतर पनमें वैभव पाया। इस अनुत्तरोत्पादक दशांग ने, उनका उज्वल यश गाया।। पद संख्या लाख वानवै, सहस चवालिस मान। अनुत्तरोत्पादक कहे, शुभ फल पुण्य प्रमान।।9।। ॐ ह्रीं अनुत्तरोत्पादक दशांग जिनागम पठन पाठन गुण भूषिताय उपाध्याय परमेष्ठिने नमः अर्घ निर्वपामीति स्वाहा। 791
SR No.009254
Book TitleVidhan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorZZZ Unknown
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages1409
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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