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________________ ज्ञाननदवारि तें पापमल जाय है, ज्ञान यों जजों उर बसो मम आय है। ज्ञान ही लोक का श्रेष्ठ रत्न जानिये, ज्ञान ही धर्म सब जीवहित आनिये। ज्ञानगज कर्मवन नाश करवाय है। ज्ञान यों जजों उर बसो मम आय है।। ज्ञान तें लोकदुःख जाय भव आन की, ज्ञान तें मोक्षतिय वरत है जान जी। ज्ञानरवि होय मिथ्यात्वतम जाय है, ज्ञान यों जजों उर बसो मम आय है। ज्ञानसम कर्मक्षयकर नहीं जानिये, मोहमदहरन को भलो भट मानिये। ज्ञान सों सकल उर दुःख मिट जाय है, ज्ञान यों जजों उर दसों मम आय है।। ज्ञान जगभेद सब जान भ्रम भान जी, ज्ञान तें मिटैं उर क्रोध छल मान जी। ज्ञान उर होय तब धर्म मन भाय है, ज्ञान यों जजों उर बसो मम आय है। ज्ञान मति भेद शत तीन छत्तीस जी, ज्ञान श्रुत अंग पूर्व भेद सर्व ईश जी, अविध के भेद त्रय तथा बहु थाय हैं, ज्ञान यों जजों उर बसो मम आय है।। मनपर्यय ज्ञान के भेद दो जानिये, ज्ञान शुद्ध केवला एकविध मानिये। इन विषै गुन घना भलो फलदाय है, ज्ञान यों जजों उर बसो मम आय है।। दोहा देव धर्म गुरुज्ञान तैं, पाये जिय शिवधाम । तातें मैं शुध ज्ञान को, मन वच करों प्रणाम ।। ओं ह्रीं श्री सम्यग्ज्ञानाय जयमालाघ्यम्। ॥इति सम्यग्ज्ञानपूजा समाप्ता।। 301
SR No.009254
Book TitleVidhan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorZZZ Unknown
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages1409
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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