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________________ तीनलोकनिःसीम अलोक की, काल तीन की जाने। जीव अजीव तत्त्व बरतेंगे, वर्तें बरतत जाने।। गुणपर्याय लसें सो सो तब, जो जो स्वांग बनाये। इत्यादिक सब जाने केवल, ज्ञान जजों थुति लाये।। ओं ह्रीं श्रीकेवलज्ञानाय अध्यम् निर्वपामीति स्वाहा। ऐसे मतिश्रुत अवधिज्ञान लखि, मनपर्याय सुखदाई। केवलज्ञान अनादि अपारी, जानत खेद न पाई ।। याविध पाँचों ज्ञान सुसम्यक, पूज्य कहे जिनवानी। तातें अघ्य बनाय जजो ये मोहि मिलें सुखदानी।। ओं ह्रीं श्रीसम्यग्ज्ञानाय अध्यम् निर्वपामीति स्वाहा। जयमाल दीखे ज्ञान थकी सकल, ज्ञानभानु सो जान। मैं पूजों मन वचन तन, मो उर प्रकटो आन।। चाल मुनियानन्द ज्ञानी की आन सब लोक परमान जी, ज्ञान ही कर्म को मूल तें ढाय जी, ज्ञान पुण्य पाप की राह बतलाय है, ज्ञान यों जजों उर बसो मम आय है।। ज्ञान ही देय शिव स्वर्ग थानक मही, ज्ञान तैं चक्रधर अर्धचक्री कही। ज्ञान ही लोक में सर्व सुखदाय हैं, ज्ञान यों जजों उर बसो मम आय है।। ज्ञान तैं कर्म अरि जीतना जान है, ज्ञान तैं आपने पाप जिय हान है। ज्ञान ही लोक का गुरु हितदाय है, ज्ञान यों जजों उर बसो मम आय है। ज्ञान ते वृत्त तप ध्यान शुभ होय जी, ज्ञान ही सकल उर भरम को खोय जी। ज्ञान अधमैल को धोय सुध लाय है, ज्ञान यों जजों उर बसो मम आय है।। ज्ञान चक्षू भले गूढ़ अर्थ जानिये, ता थकी भेद जानिये। शुभ वा अशुभ 300
SR No.009254
Book TitleVidhan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorZZZ Unknown
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages1409
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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