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________________ सम्यक्चारित्र पूजा प्रारम्भ (अडिल्ल छन्द) पंच महाव्रत सार समिति पाँचों सही, गुप्ति तीन मिल तेरहविध जिनध्वनि कही। यो ही शुभ चारित्र भवोदधि नाव है, सो मैं पूजों थाप यहां कर चाव है।। ओं ह्रीं श्री सम्यक्चारित्र! अत्र अवतर अवतर संवौषट् आह्वाननम्। अत्र तिष्ठ तिष्ठ ठः ठः स्थापनम्। अत्र मम सन्निहितो भव भव वषट् सन्निधिकरणम्। जोगीरासा की चाल क्षीरसमान मनोज्ञ सनिर्मल, त्रस जीवन बिन जानो। उज्ज्वल क्षीरोदधिको जल ले, देखत उर हरषानो।। कनकझारि में धरकर लायो, भक्ति धार सुखदाई। पूजों सम्यक्चारित मन वच, काय अंग सब नाई।। ओं ह्रीं श्री सम्यक्चारित्राय जलम् निर्वपामीति स्वाहा। बावन चन्दन अगर मिलायो, नीर सुसंग घिसायो। ताकी गंध मत्त हो अलिगण, चउ-दिस से उड़ आयो।। ऐसो चन्दन गन्धसहित जो, कनकपात्र धरि लाई। पूजों सम्यक्चारित मन वच, काय अंग सब नाई।। ओं ह्रीं श्री सम्यक्चारित्राय चन्दनम् निर्वपामीति स्वाहा। अक्षत उज्ज्वल मुक्ताफल से, खण्ड बिना चुनवाये। श्रेष्ठ सुगन्धित विविध जातिके, जो मन अति हरषाये।। ऐसे अक्षत कनकथाल धरि, प्रचुरभक्ति उर लाई। पूजों सम्यक्चारित मन वच, काय अंग सब नाई।। ओं ह्रीं श्री सम्यक्चारित्राय अक्षतम् निर्वपामीति स्वाहा। 302
SR No.009254
Book TitleVidhan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorZZZ Unknown
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages1409
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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