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________________ अगर तगर कृष्णागरु चन्दन धूप दशांग बनाई। ___ भर धूपायन आगे खेऊँ दुष्ट कर्म जर जाई।। श्रीगुरु यह मुनिराज दिगम्बर इन चरणन चित लाऊँ। भव की त्रास मिटे अब तासौं मनवाञ्छित फल पाऊँ।। ॐ ह्रीं साधुपरमेष्ठिने अष्टकर्मदहनाय धूपं निर्वपामीति स्वाहा। श्रीफल पिस्ता लौंग सुपारी केला आम मंगाऊँ। सो ले तुम पद पूज करत ही मोक्ष महाफल पाऊँ।। श्रीगुरु यह मुनिराज दिगम्बर इन चरणन चित लाऊँ। भव की त्रास मिटे अब तासौं मनवाञ्छित फल पाऊँ।। ऊँ ह्रीं साधुपरमेष्ठिने मोक्षफल प्राप्तये फलं निर्वपामीति स्वाहा। जलचन्दन इत्यादिक लेकर सुन्दर अध्य बनाऊँ। सो ले तुम पद पूज करत ही शिव रमणी वर पाऊँ।। श्रीगुरु यह मुनिराज दिगम्बर इन चरणन चित लाऊँ। भव की त्रास मिटे अब तासौं मनवाञ्छित फल पाऊँ।। ॐ ह्रीं साधुपरमेष्ठिने अनर्घ पद प्राप्तये अध्यं निर्वपामीति स्वाहा। जयमाला सफल मुनीश्वर, नमित सुरासुर, अनुदिन चरण कमल न।। तुम परसादे मन आल्हादे स्तवन करि भवदुःख गपूँ।। श्री एक आत्मध्यान सहित नमो, दोय रागद्वेष परिरहित नमो। तीन रयण मण्डित बरकाय नमो, चउकषाय रहित जति पाय नमो।। पञ्चाचार चरण विचार नमो, पञ्चास्रव आस्रव रहित नमो। पञ्चेन्द्रिय शोषित गात्र नमो, पञ्चम गति साधित तत्व नमो।। षट्काय दया कर वीर नमो, षड्द्रव्य प्रकाशन धीर नमो। 30
SR No.009254
Book TitleVidhan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorZZZ Unknown
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages1409
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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