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________________ तन्दल शशिसम धवल अनुपम भर कर थारी लाऊँ। मन वच तन से गुरु पद पूनँ महा अखय पद पाऊँ।। श्रीगुरु यह मुनिराज दिगम्बर इन चरणन चित लाऊँ। भव की त्रास मिटे अब तासौं मनवाञ्छित फल पाऊँ।। ऊँ ह्रीं साधुपरमेष्ठिने अक्षये पद प्राप्तये अक्षतान् निर्वपामीति स्वाहा। परिजात मन्दार कल्पतरु पुष्प अनेक सुहाई। सो ले तुम पद पूज करत ही कामव्याधि मिट जाई।। श्रीगुरु यह मुनिराज दिगम्बर इन चरणन चित लाऊँ। भव की त्रास मिटे अब तासौं मनवाञ्छित फल पाऊँ।। ऊँ ह्रीं साधुपरमेष्ठिने कामवाण विध्वंसनाय पुष्पं निर्वपामीति स्वाहा। लाडू घेवर और कलाकन्द फेणी आदि मँगाई। क्षुधारोग के दूरकरण को लाकर तुरत चढ़ाई।। श्रीगुरु यह मुनिराज दिगम्बर इन चरणन चित लाऊँ। भव की त्रास मिटे अब तासौं मनवाञ्छित फल पाऊँ।। ॐ ह्रीं साधुपरमेष्ठिने क्षुधारोग विनाशनाय नैवेद्यं निर्वपामीति स्वाहा। रत्नदीप मणिज्योति ललितवर कञ्चन थाल धरीजै। सो ले तुम पद पूज करत ही मोहमहातम छीजे।। श्रीगुरु यह मुनिराज दिगम्बर इन चरणन चित लाऊँ। भव की त्रास मिटे अब तासौं मनवाञ्छित फल पाऊँ।। ऊँ ह्रीं साधुपरमेष्ठिने मोहान्धकार विनाशनाय दीपं निर्वपामीति स्वाहा। 29
SR No.009254
Book TitleVidhan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorZZZ Unknown
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages1409
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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