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________________ (दोहा) आगमरुचि सौं जो पढ़े, और गहे उपदेश। सत्चि त आनन्द प्राप्त हो, नश जाये संक्लेश।। इत्याशीर्वादः। साधुपरमेष्ठि पूजा तेरह विधि चारित्र गुरु पाते सही, रूप दिगम्बर धरत गुणन के है मही। तिन चरणन सिर नाय अरज इक मैं करूँ। आवो तिष्ठो यहाँ पूज दुःख को हरूँ।। ऊँ ह्रीं साधुपरमेष्ठि ! अत्रागच्छ आगच्छ संवौषट्। (आह्वानं) ऊँ ह्रीं साधुपरमेष्ठि ! अत्र तिष्ठ तिष्ठ ठः ठः स्थापन। (स्थापनम्) ऊँ ह्रीं साधुपरमेष्ठि ! अत्र मम सन्निहितो भव भव वषट्। (सन्निधिकरणम्) अष्टक निर्मल जल की भर कर झारी गुरु सन्मुख मैं लाऊँ। जलधारा दे श्रीगुरु पूजॅ कर्मकलंक बहाऊँ।। श्रीगुरु यह मुनिराज दिगम्बर इन चरणन चित लाऊँ। भव की त्रास मिटे अब तासौं मनवाञ्छित फल पाऊँ।। ऊँ ह्रीं साधुपरमेष्ठिने जन्मजरामृत्यु विनाशनाय जलं निर्वपामीति स्वाहा। चन्दन केसर जल में घिसकर और कपूर मिलाऊँ। भव आताप निवारण कारण श्रीगुरुचरण चढ़ाऊँ।। श्रीगुरु यह मुनिराज दिगम्बर इन चरणन चित लाऊँ। भव की त्रास मिटे अब तासौं मनवाञ्छित फल पाऊँ।। ऊँ ह्रीं साधुपरमेष्ठिने संसारताप विनाशनाय चन्दनं निर्वपामीति स्वाहा। 28
SR No.009254
Book TitleVidhan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorZZZ Unknown
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages1409
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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