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________________ असि बरछी भाला बन्दूक, पूजें शक्ति लहें ना चूक। ऐसो भरम जहां नहिं होय, इस विध जजि सुध समकित सोय।। ओं ह्रीं शस्त्रपूजामलरहिताय श्री सम्यग्दर्शनाय अध्यम् निर्वपामीति स्वाहा। बालक पूजें देव सुमान, सो सब मिथ्यातम मतिमान। ऐसो भरम जहां नहिं होय, इस विध जजि सुध समकित सोय।। ओं ह्रीं बालकपूजामलरहिताय श्री सम्यग्दर्शनाय अध्यम् निर्वपामीति स्वाहा। गिरितें पड़तो काम छुड़ाय, तो वांछित सुख को जन पाय। ऐसो भरम जहां नहिं होय, इस विध जजि सुध समकित सोय।। ओं ह्रीं गिरिपतनमलरहिताय श्री सम्यग्दर्शनाय अध्यम् निर्वपामीति स्वाहा। हिंसक देव दया बिन जान, देखत क्रूर, जजें सुख मान ऐसो भरम जहां नहिं होय, इस विध जजि सुध समकित सोय।। ओं ह्रीं हिंसकदेवसेवामलरहिताय श्री सम्यग्दर्शनाय अध्यम् निर्वपामीति स्वाहा। निशा अहार करे नहिं जोय, जाके उर करुणा बहु होय । मांसाहारी निश को खाय, या बिन जजि सुध समकित भाय । ओं ह्रीं निशाहारमलरहिताय श्री सम्यग्दर्शनाय अध्यम् निर्वपामीति स्वाहा। अनगाल्यो जल पीवे नांहि, दयासहित उर धर्म सुभाय । ऐस गुणा बहु हो, सो समकित पूजें सुख होय। ओं ह्रीं अगालितजलपानमलरहिताय श्री सम्यग्दर्शनाय अध्यम् निर्वपामीति स्वाहा। 282
SR No.009254
Book TitleVidhan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorZZZ Unknown
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages1409
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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