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________________ इत्यादिक गुणजुत जो होय, कहे दोष ते एक न जोय। ___ निश्चय अरु व्यवहार सुधाय, सो समकित पूजों थुति लाय।। ओं ह्रीं सर्वदोषरहिताय श्री सम्यग्दर्शनाय अध्यम् निर्वपामीति स्वाहा। जयमाल समकित सांचा धर्म है, मोक्षवृक्ष को मूल। श्रद्धा करना गाढ-उर, हरे विषय अधशूल।। बेसरी छन्द समकित सार धर्म का बीजा, याते पाप-मैल सब छीजा। याही ते जगपूज्य कहावे, यो ही जामन मरण मिटावे।। समकित सो नाहीं धन कोई, समकित कल्पवृक्ष सम होई। समकित के गुण मुनिगण गावें, समकित जामन मरण मिटावे।। समकित ही सब कारज सारे, समकित मिथ्यारोग निवारे। समकित शुद्ध धर्म कहलावे, समकित जामनमरण मिटावे।। समकित रतन जास मन माहीं, ता सम अभूषण जग नाही। समकित सुर-शिव थान दिखावे। समकित जामनमरण मिटावे।। समकित बिन मुनि को शिव नाहीं, समकित सहित जीव शिव पाहीं। समकित देव धर्म बतलावे। समकित जामनमरण मिटावे।। समकित अग्नि कर्म निज जारे, समकित मोह-मल्ल को मारे। समकित ही भ्रम दूर हटावे। समकित जामनमरण मिटावे।। समकित ते हरि को पद होई, समकित फल अहिमिन्द्र सु होई। समकित सहित मुक्तिपद पावे। समकित जामनमरण मिटावे।। 283
SR No.009254
Book TitleVidhan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorZZZ Unknown
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages1409
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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