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________________ पुण्य उदधि नदी सपरें अघ जाय, हो ऐसो भरम जहां नहिं होय, इस विध जजि सुध समकित सोय।। ओं ह्रीं उदधिस्नानमलरहिताय श्री सम्यग्दर्शनाय अध्यम् निर्वपामीति स्वाहा। जिय को सुखदाय। अग्नि मांहि जीवित जर जांय, देवपना वे जीव लहाँय । ऐसो भरम जहां नहिं होय, इस विध जजि सुध समकित सोय।। ओं ह्रीं अग्निपातमलरहिताय श्री सम्यग्दर्शनाय अध्यम् निर्वपामीति स्वाहा। कुगुरु सेवतें साता पाय, यह दे ऋद्धि परम सुखदाय। ऐसो भरम जहां नहिं होय, इस विध जजि सुध समकित सोय।। ओं ह्रीं कुगुरुसेवामलरहिताय श्री सम्यग्दर्शनाय अध्यम् निर्वपामीति स्वाहा। अग्नि देव कर मानें सही, पूजे दीपक हो शुभ कही। ऐसो भरम जहां नहिं होय, इस विध जजि सुध समकित सोय।। ओं ह्रीं अग्निसेवामलरहिताय श्री सम्यग्दर्शनाय अध्यम् निर्वपामीति स्वाहा। गाय मूत्र अति पूत बताय, या लागे तन निर्मल था । ऐसो भरम जहां नहिं होय, इस विध जजि सुध समकित सोय।। ओं ह्रीं गोमूत्रसेवामलरहिताय श्री सम्यग्दर्शनाय अध्यम् निर्वपामीति स्वाहा। गज घोटक वृष सेव कराय, इन सेये इन लाभ लहाय। ऐसो भरम जहां नहिं होय, इस विध जजि सुध समकित सोय।। ओं ह्रीं वाहनसेवामलरहिताय श्री सम्यग्दर्शनाय अध्यम् निर्वपामीति स्वाहा। 281
SR No.009254
Book TitleVidhan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorZZZ Unknown
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages1409
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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