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________________ दोहा तीरथ परम सुहावनो, शिखरसमेद विशाल। कहत अल्पबुधि उक्तिसों, सुखदायक जयमाल। (चौपाई छन्द) सिद्धक्षेत्र तीरथ सुखदाई, वन्दत पाप दर हो जाई। शिखर शीशपर कूट मनोग्य, कहे बीस अति शोभायोग्य।। प्रथम सिद्धिवरकूट सुजान, अजितनाथ को मुक्तिसुथान। कूट तनों दर्शन फल एह, कोटि बतीस उपास गिनेह।। दूजो धवल कूट है नाम, सम्भवप्रभु जहते शिवधाम। दरश कोटि प्रोषध फलजान, लाख वियालिसकहो बखान।। आनदकूट महा सुखदाय, जहते अभिनन्दन शिव जाय। कूट तनो दरशन यों जान, लाख उपास तनो फलमान। अविचल कूट महासुख देश, मुक्ति गये अँह सुमतिजिनेश। कूटभाव धरि पूजे कोय, एक कोटि प्रोषध फल होय।। ___मोहनकूट मनोहर जान, पद्मप्रभ जैहते निर्वान। कूटपूजफल लेहु सुजान, कोटि उपास कहो भगवान।। मनमोहन है कूट प्रभास, मुक्ति गये अँह नाथ सुपास। पूजें कूट महाफल होय, कोटि बतीस उपासजु सोय।। चन्द्रप्रभ को मुक्ति सुधाम, परमविशाल ललित घटनाम। कूट तनो दर्शनफल जान, प्रोषध सोलह लाख बखान।। सुप्रभ कूट महासुखदाय, जहतें पुष्पदन्त शिव पाय। पूजे कूट महाफल लेव, कोटि उपास कहो जिनदेव।। श्री विद्युतवर कूट महान, मोक्ष गये शीतल धरिध्यान। 154
SR No.009254
Book TitleVidhan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorZZZ Unknown
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages1409
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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