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________________ पूजें त्रिविधयोग कर कोय, कोटि उपासतनो फल होय।। संकुलकूट महाशुभ जान, श्रीश्रेयांस गये शिव थान। कूट तनो दर्शन फल सुनो, कोटि उपास जिनेश्वर भनो।। कूट सुवीर परमसुखदाय, विमलजिनेश जहां शिवपाय। मनवच दरश करे जो कोय, कोटि उपासतनो फलहोय।। कूट स्वयम्भू सुभग सु नाम, गये अनन्त अमरपुर धाम। यही कूट को दर्शन करे, कोटि उपास तनो फल धरे।। है सुदत्तवर कूट महान, जॅहते धर्मनाथ निर्वान। परमविशाल कूट है सोय, कोटि उपासदरशफल होय।। कूट शान्तिप्रभ सुन्दर कह्यो, शांतिनाथ जहते शिवलह्यो। कूट तनो दर्शन है सोय, एककोटिप्रोषधफल होए।। परम ज्ञानधर है शुभकूट, शिवपुर कुन्थु गये अघ छूट। जाको पूजे जो कर जोडि, फल उपवासकह्यो इककोड़ि ॥ नाटककूट महाशुभ जान, जहतें शिवपुर अर भगवान। दर्शन करे कूट जो कोय, छयानव कोडिवासफलहोय।। संवलकूट मल्लि जिनराज, जॅहते मोक्ष भये शुभकाज। या दरशनफल कहो जिनेश, प्रोषध एक कोटि शुभवेश।। निर्जरकूट कहो सुखदाय, मुनिसुव्रत जॅहतें शिवपाय। कूट तनो अब दर्शन सोय, एक कोटिप्रोषधफल होय।। कूट मित्रधरतें नमि मुक्त, पूजत पाँय सुरा सुर युक्त। कूट तनो फल है सुखकन्द, कोटि उपास कहो जिनचंद। श्री प्रभु पाश्वनाथ जिनराज, चहुँगति से छूटे महाराज। सुवरणभद्र कूट को नाम, तासों मोक्ष गये सुखधाम।। 155
SR No.009254
Book TitleVidhan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorZZZ Unknown
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages1409
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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