SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 139
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ओं ह्रीं श्री आनन्दकूटतः श्री अभिनन्दनजिनेन्द्रादि बहत्तर कोड़ा कोड़ी सत्तरकोड़ी छत्तिसलाख ब्यालिस हजार सात सौ मुनि सिद्धपदप्राप्तेभ्यः श्रीसम्मेदशिखरसिद्धक्षेत्रेभ्यः अघ्यम् निर्वपामीति स्वाहा। 4. सुमतिनाथ, अविचलकूट (अडिल्ल छन्द) अविचल चौथो कूट महासुखथान जी। जँहतें सुमतिजिनेश गये निर्वान जी।। कोड़ाकोड़ी एक मुनीश्वर जानिये। कोड़ि चौरासी लाख बहत्तर मानिये।। सहस इक्यासी और सातसौ गाइये । कर्म काटि शिव गये नमों शिर नाइये। सो थानक मैं पूजों मनवचनकाय जी। पा हो जाय अचलपद पाय जी।। ओं ह्रीं अविचलकूटतः श्री सुमतिनाथजिनेन्द्रादि एककोड़ाकोड़ी चौरासीकोड़ि बहत्तरलाख इक्यासी हजार सात सौ मुनि सिद्धपदप्राप्तेभ्यः श्रीसम्मेदशिखरसिद्धक्षेत्रेभ्यः अघ्यम् निर्वपामीति स्वाहा। 5. पद्मप्रभ, मोहनकूट मोहनकूट महान परम सुन्दर कह्यो । पद्मप्रभ जिनराज जहां शिवपुर लह्यो। कोटि निन्यानवे लाख सतासी जानिये। सहस तितालिस और मुनीश्वर मानिये।। सप्त सैकरा सत्तर ऊपर बीस जू। मोक्षगये मुनि तिनहिं नमों नितशीश जू।। C कहे “जवाहरलाल” दोय कर जोर के । अनिनाशी पद दे प्रभु कर्मनि तोरि के।। ओं ह्रीं मोहनकूटतः श्री पद्मप्रभ जिनेन्द्रादि निन्यानवे कोडि सतासी लाख तेतालीस हजार सात सौ नव्वे मुनि सिद्धपदप्राप्तेभ्यः श्रीसम्मेदशिखरसिद्धक्षेत्रेभ्यः अध्यम् निर्वपामीति स्वाहा। 6. सुपार्शवनाथ, प्रभास कूट ( सोरठा छन्द) कूट प्रभास महान, सुन्दर जनमन मोहनो। श्रीसुपाश्व भगवान, मुक्ति गये अघनाश के कोड़ाकोडि उनचास, कोडि चौरासी जानिये । लाख बहत्तर मान, सात सहस है सात सौ।। और कहे ब्यालीस, जँहते मुनि शिवको गए । तिनहिं नमें नित शीश, दास जवाहर जोर कर ।। 139
SR No.009254
Book TitleVidhan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorZZZ Unknown
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages1409
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy