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________________ 1. श्री अजितनाथ सिद्धिधरकूट प्रथम सिद्धिवरकूट सु जानो, आनंद मंगल दाई। अजितनाथ जॅहतें शिव पहुँचे पूजों मनवचकाई।। कोडिजु अस्सी एक अरबमुनि, चौवन लाख जु गाई। कर्मकाटि निर्वाण पधारें, तिनको अध्य चढ़ाई। ओं ह्रीं सिद्धिवरकूटतः श्री अजितनाथ जिनेन्द्रादि एक अरब अस्सीकोटि चौवनलाख मुनि सिद्धपदप्राप्तेभ्यः श्रीसम्मेदशिखरसिद्धक्षेत्रेभ्यः अध्यम् निर्वपामीति स्वाहा। 2. श्री सम्भवनाथ धवलदत्तकूट धवलदत्त है कूट दूसरो, सब जियको सुखकारी। श्रीसम्भव प्रभु मुक्ति पधारें, पापतिमिर को टारी।। धवलदत्त दे आदि मुनी नव, कोड़ाकोड़ी जानो। लाख बहत्तरसहसबि यालिस, पँचशतकऋषि मानो।। कर्मनाशकरि शिवपुर पहुँचे, बन्दों शीश नवाई। तिनकेपदजग जजों भावसों, हरसि हरसि चितलाई।। ओं ह्रीं धवलदत्तकूटतः श्रीसंभावनाथजिनेन्द्रादि नौकोड़ाकोड़ी बहत्तरलाख ब्यालीस हजार पांच सौ मुनि सिद्धपदप्राप्तेभ्यः श्रीसम्मेदशिखरसिद्धक्षेत्रेभ्यः अध्यम् निर्वपामीति स्वाहा। 3. श्री अभिनन्दननाथ, आनन्दकूट (चौपाई छन्द) आनंदकूट महासुखदाय, अभिनन्दन प्रभु शिवपुर जाय। कोड़ाकोडि बहत्तर जान, सत्तरकोटि छत्तिस लखमान।। सहस बियालिस शतकजु सात, कहे जिनागम में इह भाँत। ये ऋषि कर्म काट शिव गये, तिनके पदयुग पूजत भये।। 138
SR No.009254
Book TitleVidhan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorZZZ Unknown
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages1409
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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